अमरीक
कोरोना वायरस मनुष्यता और सभ्यता को इस वक्त बेहद नागवार चुनौती दे रहा है। शेष दुनिया के साथ-साथ हमारा देश भी इससे जूझ रहा है। पंजाब में भी कोरोना का कहर बदस्तूर जारी है। कोरोना बेशुमार जनद्रोही मुनाफाखोरों के लिए धंधेबाजी का साधन बन गया है। पंजाब ही नहीं बल्कि कोरोनाग्रस्त कई दूसरे राज्यों में भी हालात कमोबेश एक सरीखे हैं।
इस संकट ने सबसे ज्यादा जिस संस्था का इकबाल तार-तार किया, वह चिकित्सा जगत है। कोरोना वायरस फैलते ही छोटे-बड़े तमाम अस्पतालों ने ओपीडी बंद कर दीं। जिनकी जारी रहीं उनमें परामर्श फीस में एकाएक चार गुना की बढ़ोतरी हो गई। आपातसेवा वार्डों में ‘सेवा’ की बजाए निर्लज्ज खुली लूट होने लगी। सीधे दस प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर दी गई। गाड़ी और रुतबा देखकर इलाज होने लगा। लुधियाना के एक बड़े अस्पताल का संचालक-डॉक्टर कुख्यात है कि वह सीसीटीवी कैमरों के जरिए पार्किंग पर निगाह रखता है ताकि पता चल सके कि आने वाला मरीज किस स्टैंडर्ड यानी कितनी महंगी गाड़ी में आया है। मतलब साफ कि हैसियत देखकर लूटा जाता है! सबसे पहले कोरोना टेस्ट करवाना अपरिहार्य है।
इसके लिए मनमर्जी कीमत वसूल की जाती है। बेशक सरकार ने टेस्ट के लिए तयशुदा शुल्क तय किया हुआ है लेकिन ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल सरकारी एडवाइजरी की ओर से पीठ किए हुए हैं। कम से कम पंजाब में तो ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं कि मामूली खांसी-जुकाम और दमे के मरीजों को रिपोर्ट आने तक लूटा जाता रहा। जिन्हें पॉजिटिव बताकर सिविल अस्पताल या आइसोलेशन वार्ड में भेजने की सिफारिश की गई, दूसरी लैब अथवा अस्पताल में उनकी रिपोर्ट नेगेटिव निकली। मेडिकल भाषा के इस पॉजिटिव-नेगेटिव में बहुतेरे लोगों पर ‘कोरोना’ पीड़ित का ठप्पा लगा और उन्हें सामाजिक तौर पर बहिष्कृत होने का दंश झेलना पड़ा। यह सब आज भी जारी है।
सरकारी अस्पताल कोरोना संदिग्धों के लिए यातना शिविर बन गए हैं और प्राइवेट अस्पतालों में उस बीमारी (कोरोना वायरस) के इलाज के लिए छह से सात लाख रुपए तक वसूले जा रहे हैं, जिसकी प्रमाणिक दवाई दुनिया के किसी भी देश के पास नहीं है। जब अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस बड़े अस्पतालों में कोरोना के संदेह में लोग जाने लगे तो अस्पतालों और लैब मालिकों की मिलीभगत भी सामने आने लगी। खुलासा हुआ कि कई जगह निजी अस्पतालों के इशारे पर मामूली अलामत के शिकार को कारोना पॉजिटिव बता दिया गया। गोया वह बीमारी का नहीं डॉक्टरों का ‘शिकार’ बन गया! बीते दिनों अमृतसर की एक बड़ी लैब पर विजिलेंस ने शिकायतें मिलने के बाद छापा डाला। इस लैब से रेड जोन में आए अमृतसर के हजारों लोगों ने कोरोना टेस्ट करवाए थे।
इस लैब में पॉजिटिव-नेगेटिव का गलीज खेल चलता रहा। अब यह लैब सील है, जिसपर लोगों को अंधा भरोसा था। गुरु की नगरी में यह पाप होता रहा और यकीनन कई शहरों में हो रहा होगा। क्या चिकित्सा जगत की पवित्रता अब अतीत की बात है? सब जगह एक और दिक्कत है। डॉक्टर मरीजों को कई फुट की दूरी से जांचते हैं। आपकी जेब अगर भारी नहीं है तो रक्तचाप तथा शुगर चेक करवाने में समस्या आएगी। अलबत्ता मेडिकल हॉल वाला यह काम जरूर कर देगा। अपने अंदाजे से दवाइयां भी दे देगा।
कोरोना फैलने के बाद श्रमिक तबका पूरी तरह टूट गया। मजदूरों का देशव्यापी पलायन शुरू हुआ। लॉकडाउन और कर्फ्यू के बीच मजदूर पैदल अपने मूल राज्यों की ओर कूच करने लगे। मुनाफाखोरों ने जमकर उन्हें लूटा। कौड़ियों के दाम पर उनका सामान, साइकिल, मोबाइल, पंखे और बर्तन हथिया लिए। राशन की दुकानों पर दोगुने दामों पर उन्हें सामान बेचा गया। बेशुमार मजदूर ‘कबूतरबाजी’ यानी गैर कानूनी तौर पर मिलीभगत से चलने वाली ट्रांसपोर्ट के जरिए अपने घर-गांव लौटे।
इस कवायद में उन्होंने बरसों की कमाई झटके में गंवा दी। मुनाफाखोरों ने उन्हें इस कदर बर्बाद कर दिया कि खाने तक को कुछ नहीं बचा। लूट किस वर्ग की नहीं हो रही? ‘पीछे से कुछ आ नहीं रहा’ यह कहकर सामान अब भी बेहद महंगे दामों पर बेचा जा रहा है। यहां तक कि जीवनरक्षक दवाइयां भी। बंद स्कूल भी विद्यार्थी बच्चों के अभिभावकों से मोटी फीस बटोरने की कोशिश में हैं। सरकार की हजार सख्ती के बावजूद।
कविता की पंक्ति- ‘आ दोस्त चंदा करें अकाल पड़ा है धंधा करें’ की तर्ज पर कई तथाकथित समाजसेवियों ने खूब चंदा किया जो उनकी निजी तिजोरियों में बंद है। कई जगह सरकारी-गैरसरकारी राशन वाजिब जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचा। मुनाफाखोरों ने बीच रास्ते उसे हड़प लिया। तो कोरोना वायरस की मुनाफे की मंडी में मुनाफाखोर खूब पूजा कर रहे हैं और रोज कामना करते हैं कि यह जानलेवा संक्रमण जाए नहीं! धिक्कार है…!!
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
साभार-हिस