-
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ओसीएस वीआरएस प्रावधान संशोधित करने का आदेश दिया
-
इस बदलाव के लिए दिया तीन महीने का समय
-
कहा- सरकारी सेवा में चिकित्सा विशेषज्ञों की आवश्यकता व्यक्तिगत वीआरएस अनुरोधों से अधिक महत्वपूर्ण
कटक। अगर ओडिशा सरकार हाईकोर्ट के एक फैसले को लागू करती है, तो महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों को वीआरएस लेना आसान नहीं होगा।
ओडिशा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ओडिशा सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1992 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) से जुड़े प्रावधानों में संशोधन करने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह बदलाव तीन महीने के भीतर करने का आदेश दिया, साथ ही जनहित का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता डॉ स्निग्धा प्रभा मिश्रा की वीआरएस अर्जी को खारिज कर दिया।
डॉ. मिश्रा, जो कि फिजियोलॉजी की प्रोफेसर हैं, ने पहले एसआरएम मेडिकल कॉलेज, भवानीपाटना में अपने स्थानांतरण आदेश को रद्द करने और एसजेएमसीएच, पुरी में पोस्टिंग की मांग की थी। जब यह अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया, तो उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए वीआरएस के लिए आवेदन किया।
हालांकि, 17 सितंबर 2024 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने उनका वीआरएस आवेदन अस्वीकार कर दिया, क्योंकि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की भारी कमी थी। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी और तर्क दिया कि प्रगतिशील दृष्टिहानि और हृदय संबंधी समस्याओं के कारण वीआरएस न देना अन्यायपूर्ण है।
कई राज्यों का दिया हवाला
न्यायमूर्ति एसके पाणिग्रही ने कहा कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में ऐसे प्रावधान हैं, जो जनहित को खतरे में डालने वाली स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को रोकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ओडिशा सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1992 में ऐसे कोई प्रावधान नहीं हैं, जिससे महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं में कार्यरत अधिकारी बिना किसी प्रतिबंध के वीआरएस ले सकते हैं।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकारी सेवा में चिकित्सा विशेषज्ञों की आवश्यकता व्यक्तिगत वीआरएस अनुरोधों से अधिक महत्वपूर्ण है।
न्यायमूर्ति पाणिग्राही ने संबंधित विभाग को ओसीएस (पेंशन) नियमों में संशोधन करने और अन्य राज्यों के मॉडल के अनुसार सुधार करने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि संशोधन 14 फरवरी के फैसले की तारीख से तीन महीने के भीतर पूरा होना चाहिए।