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तीन दिवसीय लोकपर्व रजोत्सव 15 जून से

अशोक पाण्डेय, भुवनेश्वर

भारत का इकलौता पर्व रज है, जिसे केवल ओडिशा में ही मनाया जाता है. इसे ओडिशा का लोकपर्व तथा कृषि पर्व भी कहा जाता है. ओडिशा में इसे मनाये जाने की सुदीर्घ परम्परा रही है. आरंभ में इसकी शुरुआत दक्षिण ओडिशा से हुई, जो अब लगभग सात दशकों से पूरे ओडिशा में हर्षोल्लास के साथ घर-घर मनाया जाता है. चार दिवसीय रजोत्सव का आरंभ पहली रज के रुप मे 15 जून, मिथुन संक्रांति से हो रहा है, जो 18 जून तक चलेगा. गौरतलब है कि मिथुन संक्रांति से सौरमण्डल तथा प्रकृति में बदलाव आरंभ हो जाता है. ग्रीष्म के उपरांत वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है. जिस प्रकार महिलाओं का प्रतिमास मासिक धर्म होता है, जो उसके शरीर के विकास का प्रतीक होता है. लड़कियों की खुशी के लिए रजोत्सव लगभग चार दिनों तक बड़े ही आन्नद-मौज के साथ मनाया जाता है. जून महीने की मिथुन संक्रांति का ओडिशा में विशेष महत्त्व है. उस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्त्व है. ऐसी मान्यता है कि उससे भावी लोकजीवन में शांति तथा अमन-चैन आता है. रजोत्सव का अपना सामाजिक महत्त्व भी है. पहली रज को घर की बालिकाएं, युवतियां, महिलाएं तथा बुजुर्ग महिलाएं पूरे दिनभर आपस में मिलकर मौज-मस्ती करतीं हैं. नाच-गान करतीं हैं. लुड्डो खेलती हैं. रज-पान खाती हैं. झूला झुलती हैं. परम्परागत साड़ी पहनती हैं. अपने हाथों मेंहदी रचाती हैं. कहते हैं कि जिस प्रकार धरती वर्षा के आगमन के लिए अपने आपको तैयार करती हैं. ठीक उसी प्रकार  पहली रज को अविवाहिताएं अपने आपको तैयार करतीं हैं. सुबह में उठकर अपने शरीर पर हल्दी-चंदन का लेप लगातीं हैं. पवित्र स्नान करतीं हैं. पूजा-पाठ करतीं हैं. अपने भावी सुखमय जीवन हेतु भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करतीं हैं. आरंभ के तीन दिन तक महिलाएं बिना पका हुआ भोजन करतीं हैं. खाने में नमक तक नहीं लेतीं हैं. पैरों में चप्पल तक नहीं पहनतीं. लगातार तीन दिनों तक किसी प्रकार काट-छिल भी नहीं करतीं हैं. सबसे रोचक बात यह कि उनदिनों ओडिशा में धरती में कोई खुदाई भी नहीं होती है. रजोत्सव में मौसमी फल, ओड़िया परम्परागत भोजनः पूड-पीठा खाती हैं। 15 जून से 18 जून तक मनाये जानेवाले रजोत्सव को इस वर्षः2021 में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के प्रभाव को ध्यान में रखकर तथा ओडिशा सरकार के कोरोना दिशानिर्देश के तहत पूरे ओडिशा में इसे सामूहिक रुप से न मनाकर अपने-अपने घर में ही गत वर्ष की तरह चार दिवसीय रजोत्सव पर्व मनाया जाएगा.

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