जाजपुर. जाजपुर जिले में प्राचीन मंदिर और मूर्तियों के मिलने का सिलसिला जारी है. कुछ ही दिन पहले जिले के दशरथपुर के पास बैतरणी नदी से एक प्राचीन शिवलिंग और एक मंदिर का अवशेष मिला था. इसके बाद कल भी जिले के देवीगड़ा घाट पर नदी के किनारे से और एक शिवलिंग तथा अन्य दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां मिलीं हैं. यह मूर्तियां स्थानीय लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. जानकारी के अनुसार, नदी के किनारे से उत्खनन द्वारा रेत उठाने के दौरान एक प्राचीन मंदिर के शिवलिंग और अन्य अवशेष पाए गए. मूर्तियों में एक शिवलिंग, एक पत्थर पर नंदी की मूर्ति और देवी लक्ष्मी की एक मूर्ति शामिल थी. सभी काले संगमरमर के पत्थरों से बनाई गई हैं.
इन मूर्तियों की उत्पत्ति के सवाल को लेकर स्थानीय लोगों और बुद्धिजीवियों की अलग-अलग राय है. अगर ग्रामीणों की बात मानें, तो ये मूर्तियां आठवीं और 10वीं शताब्दी ईस्वी सन् के बीच के भूमा-कर वंश की हैं, जबकि कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि ये सोमवंशी राजवंश (नौवीं और 12वीं शताब्दी के बीच) के हैं.
एक बुद्धिजीवी जयंत गोस्वामी ने कहा कि जाजपुर का यह क्षेत्र शैविज्म, शक्तिज्म और वैष्णविज्म का संगम है. ये मूर्तियां संभवत: सोमवंशी युग की हैं, जब राजा यजती केशरी ने जाजपुर में बैतारिणी नदी के पास दशाश्वमेध यज्ञ किया था.
गोस्वामी ने कहा कि सरकार को नदी के तल से अंधाधुंध रेत खनन की अनुमति देने से पहले इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखना चाहिए था. अगर रेत खनन के दौरान सावधानियां बरती जाती तो इन सभी प्राचीन कलाकृतियों को अखंडित बरामद किया जा सकता था.
एक स्थानीय व्यक्ति ने आरोप लगाया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) एक गहरी नींद में है. जाजपुर एक प्राचीन स्थान है और यहां हजारों प्राचीन मूर्तियां और कलाकृतियां हैं, जो बैतारिणी नदी के तट के चारों ओर बिखरी हुई हैं और नदी में मिलती हैं. एएसाई को इसकी परवाह नहीं है.
उल्लेखनीय है कि जाजपुर जिले के दशरथपुर गांव में 16 मार्च को बैतरणी नदी में एक शिव मंदिर के अवशेष मिले थे.