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परंपरा को बचाये रखने के लिए शिष्य करेंगे प्रयास – विष्णु दत्त
प्रमोद कुमार प्रृष्टि, पुरी
गुरु श्री रामचंद्र सुआर के निधन से बनाटि खेल जगत शून्य सा हो गया है. गुरु रामचंद्र इस खेल को एक नई ऊंचाई तक ले गये थे. उनके निधन से इस खेल से जुड़े खिलाड़ियों और चाहने वाले लोगों में शोक की लहर दौड़ गयी है. गुरु रामचंद्र हर साल पुरी में निकलने वाली विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दौरान महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी शुभद्रा के रथों के समक्ष बनाटि खेल का प्रदर्शन का नेतृत्व करते थे. उनमें आग से खेलने की अद्भुत क्षमता थी. उनका प्रदर्शन अद्भुत और आकर्षण का केंद्र होता था.
गुरु रामचंद्र सुआर का निधन 13 जनवरी को गंभीर बीमारियों के कारण हो गया. अपने जीवन काल में सन् 1990 से अब तक पुरी जिला के साथ-साथ राज्यभर में विभिन्न विद्यालयों में बनाटि खेल की शिक्षा वह मुक्त में देते थे. इसके साथ-साथ भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा, स्नान पूर्णिमा, नीलाद्री बीजे, बाहुड़ा यात्रा में महाप्रभु जी की पहाड़ी के समय बनाटि खेल को अपने शिष्यों के साथ प्रदर्शित करते थे. एक सबसे बड़ी बात यह है कि महाप्रभु जगन्नाथ जी के सामने सिर्फ बनाटि खेल ही प्रदर्शित होता है. इस महान परंपरा को बचाने के लिए उन्होंने इसे एक खेल के रूप में स्थापित करते हुए इसकी रोचकता को बढ़ावा दिया. साथ ही इसे बढ़ावा देने के लिए इसकी प्रतियोगिताएं आयोजित करने लगे और विद्यालयों में एक शिक्षा रूप में जोड़ने का प्रयास किया.
बनाटि खेल के गुणों से आपार रूप से संपन्न इस गुरु ने खुद के जीवन में कुछ भी संचय नहीं किया. गरीबी के साथ-साथ इनका जीवन पिछले डेढ़ साल से किडनी और पैरालिसिस, मधुमेह बीमारियों से घिर गया था. इनके शिष्य विष्णु दत्त दास ने गहरा शोक व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि गुरु जी गुणवत्ता के कारण बनाटि की परंपरा को एक नया रूप मिला और आज यह क्षेत्र शून्य सा हो गया है. उन्होंने कहा कि सभी शिष्य मिलकर गुरु दक्षिणा के रूप में इस खेल को बचाये रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जायेगा.