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कला संस्कृती का अलंकार है और संस्कृती कला का अधिष्ठान है – प्रो रजनीशजी शुक्ल, कुलपती

भुवनेश्वर. अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा् श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्म शताब्दी समारोह व्याख्यानमाला की श्रृंखला में आभासी पटल पर एक विशेष व्याख्यान ‘चतुर्थ पुष्प’ आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के सन्माननीय कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ला ने ‘श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की दृष्टी में भारतीय कला’ विषय पर अपने विचार साझा किये. पूज्यनीय दत्तोपंतजी के तथ्यपरक विचार, रंजनकारी तरीके से, सुचारू रुपसे प्रगट किये. दत्तोपंतजी के मनका भाव व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि, निजता से परे, सबके लिए उदात्त जीवन कि निर्मिती के साथ एकात्मता, अनन्यता, अखंडता, सर्वता और स्वतंत्रता का बोध प्रदान करने वाली तत्वप्रणाली देशहित में ही नहीं वैश्विक हित में भी कार्यकारक होने की बात कही. प्रो.रजनीश शुक्ला ने ठेंगड़ीजी को स्मरणांजली अर्पण करते हुए ठेंगड़ीजी के भारतीय कला के प्रति समर्पण भाव को व्यक्त किया. त्रिसूत्री के रुपसे कलाभाव को प्रस्तुत करते हुए कहा कि, ठेंगडीजी मानते थे कि कला संस्कृति का अलंकार है और संस्कृति कला का अधिष्ठान है. इस तरह कला संस्कृति को सुशोभित कर सुंदर, कमनीय, रुचिकर और सौन्दर्यबोध प्रदान करती है. संस्कृति विकास में कला का महत्व न जानने कि वजह से विश्वभर में कई जगह शांति, स्थिरता व संतुलित व्यवस्था का निर्माण नहीं हो सका. इसमें भारत का हिंदू जीवन दर्शन सही मायने में कला का महत्व मानता है. नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस भाव को जानकर उज्ज्वल भविष्य निर्माण में कदम उठाया है.
इस अवसर पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के माननीय अध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद सिंघल, महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा, संगठन मंत्री महेंद्र कपूर सहित महासंघ के पदाधिकारियों एवं देश के कोने कोने से शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, गणमान्य व्यक्तियों एवं मीडिया कार्यकर्ताओं ने भाग लिया.

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