- ओडिशा के वैश्य समाज का लक्ष्य अग्रसेन महाराजा की समाजवादी अवधारणा को अपनी ओर से करना ही है साकार
अशोक कुमार पांडेय, भुवनेश्वर
उड्र, उत्कल, कलिंग और ओडिशा के नाम से विख्यात ओडिशा प्रदेश में अग्रसेन जयंती मनाने की परम्परा अति प्राचीन रही है. कहते हैं कि 14वीं शताब्दी में राजा मानसिंह ने कुछ राजस्थानी कारोबारियों को व्यापार करने के लिए ओडिशा लाया. कुछ लोगों को यह भी मानना है कि ओडिशा में मारवाड़ी समुदाय का नये कारोबार के सिलसिले में ओडिशा आगमन लगभग पांच सौ साल पुराना इतिहास है. सबसे बड़ी बात यहां पर यह देखने को मिलती कि राजस्थान के लोग ओडिशा के बलांगीर, बरगढ़, टिटलागढ़, बिसरा, राउरकेला, संबलुपर, कटक, जटनी, ब्रह्मपुर तथा भुवनेश्वर आदि व्यापारी केन्द्रों पर जब से आये तभी से वे अग्रसेन जयंती मनाते हैं. प्रतिवर्ष नवरात्रि के पहले दिन अग्रसेन जयंती मनाई जाती है. महाराजा अग्रसेन को अग्रवाल समाज का जन्मदाता माना जाता है, जो समाजवाद के सच्चे प्रवर्तक थे. वे प्रियदर्शी, लोकनायक, समाज सुधारक तथा समाजवाद के सच्चे प्रवर्तक थे. उनका जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण तथा कलियुग के प्रथम चरण में 5185 वर्ष पूर्व में हुआ था. वे अग्रोदय राज्य के महाराज थे, जिनकी राजधानी आज भी अग्रोहा में कायम है. वे बल्लभगढ़ के राजा के सबसे बड़े राजकुमार थे. महाराजा अग्रसेन आजीवन अत्यंत दयालु, शांतिप्रिय, न्यायप्रिय तथा धर्मप्रिय थे. वे पशु बलि के सख्त विरोधी थे. उनका विवाह माधवी नामक एक रुपवती तथा गुणवान राजकुमारी से हुआ. हरियाणा के हिसार में वह राज्य अवस्थित है. सरकार ने वहां पर अग्रोहा विकास ट्रस्ट बना दिया है, जिसके द्वारा अनेक स्कूल, कालेज, अस्पताल, अतिथिशाला आदि निर्मित हैं, जो महाराजा अग्रसेन की अमर योगदान गाथा की याद दिलाते हैं. महाराजा अग्रसेन के कुल 18 गोत्र हैं. ओडिशा के अलग-अलग व्यापारी केन्द्रों पर अनेक अग्रसेन-भवन भी निर्मित हैं, जहां पर अनेक प्रकार के सामाजिक, धार्मिक तथा जनसेवा आदि से जुड़े अनेकानेक कार्यक्रम नियमित रुप से पूरे सालभर चलते रहते हैं. कालांतर में निःस्वार्थ जनसेवा के तहत महाराजा अग्रसेन ने अपने सूर्यवंशी क्षत्रीय धर्म का परित्यागकर वैश्य धर्म अपना लिया. उनका विश्वास लोकतंत्र, आर्थिक समानता तथा सामाजिक न्याय आदि में अटूट था. 108 वर्षों तक राज करने के उपरांत महाराजा अग्रसेन ने संन्यास ले लिया. आज ओडिशा के अलग-अलग व्यापारी केन्द्रों के समस्त उद्योगपतियों, कारोबारी तथा अलग-अलग व्यापार से जुड़े वैश्य समाज के लोग कोरोना महामारी के संक्रमण के बावजूद भी अपने-अपने घरों में पूरी श्रद्धा, आस्था, विश्वास तथा हर्षोल्लास के साथ अग्रसेन जयंती मना रहे हैं. अग्रसेन महाराजा के सिद्धांत: ‘‘एक ईंट तथा एक रुपये के सिद्धांत को अपनाकर’’ वे अपनी आय का एक प्रतिशत व्यय समाजहित और लोकहित में सबकी खुशी के लिए कर रहे हैं. इसीलिए तो वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल में भी महाराजा अग्रसेन जयंती ओडिशा के प्रत्येक व्यापारी तथा कारोबारी अपने-अपने घर में ही मना रहे हैं. ओडिशा का समस्त वैश्य समाज अपने-अपने जनपद के लोगों की खुशी तथा समृद्धि चाहता है. सच कहा जाय तो कोरोना संक्रमण के दौरान ओडिशा में अग्रसेन जयंती मनाने का परम लक्ष्य महाराजा अग्रसेन के सिद्धांतों को अक्षरशः पालन करते हुए अपनी खुशी के साथ-साथ सबकी खुशी की कामना के रुप में अग्रसेन जयंती मनाना ही है.