आँखे खोलो धृतराष्ट्र, सुनो विदुर की वाणी।
अंधभक्त भीष्म जी बैठे द्रोण भरे यहाँ पाणी।।
एक ही उल्लू काफी है बर्बाद गुलिस्ता करने को।
कर्ण विकर्ण दोनों बैठे बिन बात यहाँ पर मरने को।।
सरेन्द्री का चीरहरण जब राजसभा में होता है।
कृपाचारी चुप बैठे तो लोकतन्त्र भी रोता है।।
पच्चीस लाख नगदी कोठा और नौकरी मिल जाये।
गई भाड़ में नैतिकता चेहरे पर लोट्स खिल जाये।।
हस्तिनापुर की इज्जत का और पलीता करते क्यों?
दुर्योधन को दंड देने से धृतराष्ट्र अब डरते क्यों?
किशन खंडेलवाल, भुवनेश्वर