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शिक्षकों का सम्मानजनक जीवन ही राष्ट्र निर्माण की सशक्त नींव : धर्मेंद्र प्रधान

  •  अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ के कार्यक्रम में शामिल हुए केन्द्रीय शिक्षा मंत्री

भुवनेश्वर। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि यदि विकसित ओडिशा और विकसित भारत के निर्माण में युवा पीढ़ी इंजन की भूमिका निभाती है, तो शिक्षक समाज उनका वास्तविक मार्गदर्शक है। शिक्षकों का सम्मानजनक जीवन ही राष्ट्र निर्माण की सशक्त आधारशिला है और सरकार उनके समग्र विकास के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

रविवार को अनुगूल में अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ (विद्यालय शिक्षा), ओडिशा प्रांत की वार्षिक राज्य सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए प्रधान ने कहा कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ केवल एक शिक्षक संगठन नहीं, बल्कि एक महान विचारधारा है। शिक्षकों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का पूर्ण अधिकार है। यह सम्मान केवल आजीविका तक सीमित नहीं, बल्कि उनके कर्तव्य, निष्ठा, त्याग और समाज के प्रति निःस्वार्थ समर्पण से जुड़ा हुआ है।

उन्होंने कहा कि शिक्षक होना केवल एक पेशा या विकल्प नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी का भविष्य गढ़ने की एक बड़ी जिम्मेदारी और दृढ़ संकल्प है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आदि शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद, अरविंद, रवींद्रनाथ टैगोर और महिमा गोसाईं तक सभी महान विचारकों ने भारतीयता का मार्ग प्रशस्त किया है। आज आवश्यकता है कि हम ‘मैकाले मानसिकता’ से बाहर निकलकर अपनी संस्कृति और स्वाभिमान को अपनाएं। इस दिशा में अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ को भी जिम्मेदारी के साथ आगे आना चाहिए।

प्रधान ने कहा कि वर्ष 2036 में ओडिशा अपने गठन के 100 वर्ष और 2047 में भारत स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूर्ण करेगा। वर्तमान में ओडिशा में सरकारी और निजी स्तर पर लगभग 75 लाख स्कूली छात्र हैं। इस अवधि में सरकारी स्कूलों के छात्रों को सक्षम बनाने के लिए शिक्षक, सरकार और समाज को मिलकर कार्य करना होगा। उन्होंने बताया कि स्कूल प्रबंधन समितियों के लिए नई नीति लागू की जाएगी, जिसकी सफल क्रियान्वयन की जिम्मेदारी समाज की होगी।

शिक्षकों को शिल्पी’ बताते हुए प्रधान ने कहा कि वे कोमल मिट्टी समान बच्चों को सुंदर आकार देने का कार्य करते हैं। छात्रअभिभावक और शिक्षक के समन्वय से ही समाज में वास्तविक परिवर्तन संभव है। उन्होंने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत ओडिशा में स्वाभिमानस्वावलंबन और संस्कार आधारित नए पाठ्यपुस्तकों के निर्माण पर भी विशेष जोर दिया।

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