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भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए अपनाना होगा भारतीय तंत्र : पराग अभ्यंकर

  •     अपनी उन्नति और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति को स्वदेशी तंत्र का निर्माण करना भी स्वतंत्रता का सच्चा अर्थ

भुवनेश्वर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख पराग अभ्यंकर ने कहा कि स्वतंत्रता का सच्चा अर्थ केवल विदेशी अधीनता से मुक्ति नहीं है, बल्कि अपनी उन्नति और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वदेशी तंत्र का निर्माण करना भी है। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भुवनेश्वर महानगर द्वारा उत्कल विश्वविद्यालय के दीक्षांत ऑडिटोरियम में आयोजित युवा सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि 15 अगस्त 1947 को स्वाधीनता मिल गई। अर्थात किसी की अधीनता से मुक्त हो गए, आजाद हो गए। अपने निर्णय लेने के लिए अंग्रेज वायसराय पर डिपेंडेंट  नहीं थे। इसलिए हम इंडिपेंडेट कहलाए। अपनी नियति डेस्टिनी का निर्णय करने के लिए सक्षम हो गए। परन्तु स्वतंत्रता का सच्चा अर्थ है- अपनी वास्तविक उन्नति, लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपना तंत्र निर्माण कर लेना।

उन्होंने कहा कि आज भी हमारी पहचान इंडिया दैट इज भारत के रूप में होती है, जबकि केवल “भारत” या “हिंदुस्तान” नाम ही स्वीकार करना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों तक जिस शिक्षा, न्याय और आर्थिक नीति के तंत्र के माध्यम से हमने विश्व गुरु तथा सोने की चिड़िया का दर्जा प्राप्त किया था, उसे भूलकर गुलामी के दौर की ही शिक्षा, न्याय और आर्थिक नीति पर हमारा शासन तंत्र गत 75 वर्षों तक चला। अर्थात  हमने अपने तंत्र को अपनाने के बजाय विदेशी तंत्र को स्वीकार किया। जब हम प्राचीन भारतीय नीतियों को अपनाएंगे, तभी हम वास्तव में स्वतंत्र कहलाएंगे।

अभ्यंकर ने कहा कि जब भारत अपने प्राचीन भारतीय नीतिगत तंत्र को पुनः स्थापित करेगा, तभी हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र कहलाएंगे।

उन्होंने कहा कि भारत की विश्व के प्रति क्या भूमिका है, यह स्वामी विवेकानंद जी ने 1897 में लाहौर के भाषण में बताया था। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के 1897 के लाहौर भाषण का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की नियति विश्व बंधुत्व और शांति के जीवन मूल्यों को पूरे विश्व में फैलाने की है। उन्होंने कहा कि इन जीवन मूल्यों को समाज के प्रत्येक व्यक्ति के भीतर जागृत करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि जब त्याग और सेवा की भावना समाज तथा शासन, दोनों के तंत्र में प्रतिष्ठित होगी, तभी हम कह सकेंगे कि सच्चा स्वातंत्र्य प्राप्त हुआ है।

अभ्यंकर ने युवाओं से आह्वान किया कि वे इस राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत 100 वर्षों से इसी कार्य में लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि युवाओं की सहभागिता से इसे आगे बढ़ाना है।

उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो यज्ञेश्वर दण्डपाट समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

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