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आईएफपीआरआई और आईसीएआर ने पेश की 2025 ग्लोबल फूड पॉलिसी रिपोर्ट
भुवनेश्वर। इंटरनेशनल फ़ूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से 16 सितम्बर को नई दिल्ली में उच्चस्तरीय क्षेत्रीय संवाद “बदलती दुनिया के लिए खाद्य नीति : दक्षिण एशिया के लिए सबक और प्राथमिकताएं” आयोजित किया। इसी अवसर पर आईएफ़पीआरआई की 2025 ग्लोबल फ़ूड पॉलिसी रिपोर्ट का दक्षिण एशिया संस्करण भी जारी किया गया। संवाद में वरिष्ठ नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और विकास साझेदारों ने भाग लिया और जलवायु परिवर्तन, कुपोषण तथा जनसांख्यिकीय दबावों के बीच लचीली, समावेशी और टिकाऊ खाद्य प्रणाली बनाने पर विचार-विमर्श किया।
मुख्य अतिथि प्रो एस महेंद्र देव, अध्यक्ष, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने कहा कि खाद्य प्रणाली एजेंडे को पारंपरिक प्राथमिकताओं से अलग नहीं किया जा सकता। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर सस्ती, पौष्टिक और विविध आहार सुनिश्चित करने वाली खाद्य प्रणाली विकसित करनी होगी।
पीढ़ी-दर-पीढ़ी कुपोषण की समस्या तोड़ने पर जोर
नीति आयोग के सदस्य डॉ विनोद के पॉल ने कुपोषण की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली समस्या तोड़ने के लिए गर्भधारण से पूर्व हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया।
क्लाइमेट रेजिलिएंस और जेंडर रिस्पॉन्सिव भी चर्चे में
राज्य सरकार के कृषि एवं किसान सशक्तिकरण विभाग के सचिव डॉ अरविंद कुमार पाढ़ी ने बताया कि राज्य ने क्लाइमेट रेजिलिएंस सेल और जेंडर रिस्पॉन्सिव सेल स्थापित कर जलवायु और लैंगिक दृष्टिकोण को नीति-निर्माण का हिस्सा बनाया है। उन्होंने सीड्स विदाउट बॉर्डर्स जैसे क्षेत्रीय सहयोग कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए कहा कि इनसे जलवायु-सहिष्णु किस्मों का प्रसार तेज हो रहा है।
नवाचार और पारंपरिक ज्ञान को जोड़ने पर जोर
यूएनडीपी भारत प्रतिनिधि डॉ एंजेला लुसिगी ने नवाचार और पारंपरिक ज्ञान को जोड़ते हुए समावेशी समाधान की अपील की। वहीं आईएफपीआरआई की वरिष्ठ निदेशक डॉ पूर्णिमा मेनन ने नीति साक्ष्यों के वैश्विक संयोजक के रूप में आईएफ़पीआरआई की भूमिका को रेखांकित किया।
खाद्य सुरक्षा और विविध आहार पर जोर
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष प्रो एस महेंद्र देव ने कहा कि खाद्य प्रणाली एजेंडा पारंपरिक प्राथमिकताओं से अलग नहीं हो सकता। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर ऐसी खाद्य प्रणालियां तैयार करनी होंगी जो सस्ती, पौष्टिक और विविध आहार उपलब्ध करा सकें।
ओडिशा मॉडल को सराहा गया
ओडिशा सरकार की अतिरिक्त मुख्य सचिव अनु गर्ग ने कहा कि ओडिशा की यात्रा यह साबित करती है कि संस्थागत निर्माण और सिंचाई में निवेश से कैसे बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कभी भूखमरी से बदनाम जिले आज भारत के पांचवें सबसे बड़े धान उत्पादक बन चुके हैं। अब हमारा ध्यान कृषि में जलवायु अनुकूलन को शामिल करने पर है ताकि यह प्रगति टिकाऊ बने।
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