Home / Odisha / संबलपुरी नाटककार पद्मश्री विनोद कुमार पासायत का निधन

संबलपुरी नाटककार पद्मश्री विनोद कुमार पासायत का निधन

  •  89 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस

संबलपुर। संबलपुरी नाटककार, कवि और गीतकार विनोद कुमार पासायत का बुधवार सुबह 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे लंबे समय से उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे और संबलपुर स्थित सेन पार्क के पास अपने आवास पर अंतिम सांस ली।

3 दिसंबर 1935 को बलांगीर जिले के कुस्मेल गांव में जन्मे पासायत पेशे से नाई थे, लेकिन उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन संबलपुरी नाटक, गीत और कविता को समर्पित किया। उनकी रचनाएं सरल भाषा और स्थानीय संस्कृति से गहरे जुड़ाव के लिए जानी जाती थीं। उनका प्रसिद्ध नाटक ‘मुई नइ मरे’ और अनेक संबलपुरी लोकगीत आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करते हैं।

सम्मान और उपलब्धियां

साहित्य और संस्कृति में योगदान के लिए पासायत को कई सम्मान मिले। वर्ष 2024 में उन्हें पद्मश्री, 2008 में सरला पुरस्कार, 2010 में ओडिशा साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2019 में ओडिशा संगीत नाटक अकादमी का ‘सारदा प्रसन्न सम्मान’ प्रदान किया गया।

साहित्य और संस्कृति में अपूरणीय क्षति

पासायत के निधन से ओडिशा की साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत में शून्य पैदा हो गया है। संबलपुरी संस्कृति को वैश्विक मंच तक पहुंचाने में उनके योगदान को लंबे समय तक याद किया जाएगा।

मुख्यमंत्री माझी ने निधन पर जताया शोक

मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है। अपने संदेश में मुख्यमंत्री माझी ने लिखा कि पद्मश्री सम्मानित विशिष्ट नाटककार, कवि और साहित्यकार विनोद कुमार पासायत के निधन के समाचार से मैं अत्यंत दुःखी हूं। उनका जाना हमारे साहित्य और संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति है। भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्मा को शांति और परिवार को इस दुःख को सहने की शक्ति मिले।

एक मौन साधक थे – धर्मेन्द्र प्रधान

विनोद कुमार पशायत के निधन पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री तथा संबलपुर से सांसद धर्मेन्द्र प्रधान ने गहरा शोक व्यक्त किया है। अपने शोक संदेश में प्रधान ने कहा कि पद्मश्री विनोद कुमार पशायत के निधन का समाचार सुनकर मैं अत्यंत दुखी और व्यथित हूं। दशकों से उन्होंने संबलपुरी साहित्य और संगीत के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देकर न केवल इस विधा को समृद्ध किया, बल्कि राज्य का मान भी बढ़ाया। उन्होंने आगे कहा कि वह एक मौन साधक थे, जिन्होंने संबलपुरी साहित्य को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया। उनका साहित्यिक योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।

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