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कटक की सामाजिक संस्थाओं में बढ़ता राजनीतिक विद्वेष, भाईचारे की परंपरा टूटी
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गुटबाज़ी, आरोप-प्रत्यारोप और ध्रुवीकरण ने बिगाड़ा माहौल
पार्ट-1
कटक। कटक की सामाजिक संस्थाएं, जो वर्षों से सामूहिकता, सेवा और भाईचारे की मिसाल रही हैं, अब राजनीतिक विद्वेष और गुटबाज़ी की गिरफ्त में आती दिख रही हैं। हाल के दिनों में विभिन्न संस्थाओं के भीतर जिस तरह के विवाद, टकराव और ध्रुवीकरण सामने आए हैं, उसने शहर के सामाजिक ढांचे पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहले जहां विचारों का आदान-प्रदान और परस्पर सहयोग इन संस्थाओं की पहचान हुआ करता था, अब वहां व्यक्तिगत वर्चस्व की लड़ाई, गुटों का टकराव और पदों के लिए खींचतान हावी हो चुकी है। आयोजनों से लेकर बैठकों तक, हर मंच पर अब समाज सेवा से ज़्यादा शक्ति प्रदर्शन और रणनीतिक गठजोड़ दिखाई देने लगे हैं।
पदाधिकारी बनने की होड़ में अब विचारधारा और समर्पण नहीं, बल्कि चुनावी जोड़तोड़ और खेमेबंदी काम आ रही है। संस्थाओं में किसी दल विशेष या प्रभावशाली व्यक्ति के करीबी होने को योग्यता का मानक बना दिया गया है। इससे पुराने कार्यकर्ता हाशिये पर चले गए हैं और युवाओं में भ्रम और हताशा का माहौल बन गया है।
कुछ संस्थाओं में तो स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि सामान्य बैठकों में भी विरोधी गुटों के बीच तीखी बहस और बहिर्गमन जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। मंचों पर विवाद, प्रेस नोट में कटाक्ष और सोशल मीडिया पर आरोपों का सिलसिला अब संस्था के अंदरूनी मुद्दों को सार्वजनिक तमाशा बना रहा है।
कई पुराने समाजसेवी चुपचाप संस्था से दूरी बना चुके हैं। कुछ युवा कार्यकर्ता खुद को इस्तेमाल किया गया महसूस कर रहे हैं। इससे समाज के वास्तविक मुद्दे और सेवा की भावना पीछे छूटती जा रही है।
कटक में सामाजिक संस्था अब विचार, उद्देश्य और मिशन की नहीं, बल्कि पद, प्रभाव और पहचान की लड़ाई बनती जा रही हैं। भाईचारा, जो इन संस्थाओं की आत्मा थी, अब धीरे-धीरे नारा बनकर रह गया है।