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श्रीमंदिर से ‘मोदक चोरी’ के शुरुआती आरोप प्रमाणित तथ्यों पर आधारित नहीं – एसजेटीए मुख्य

भुवनेश्वर। पुरी श्रीजगन्नाथ मंदिर से जुड़े पवित्र ‘मोदक’ की कथित चोरी का मामला लगातार चर्चा में बना हुआ है। इस मुद्दे पर पहली बार श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक डॉ. अरविंद पाढ़ी ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि बड़ग्राही द्वारा लगाए गए प्रारंभिक आरोप प्रमाणित तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और मामले की गहन जांच की आवश्यकता है।
डॉ. पाढ़ी ने यह बयान उस समय दिया जब सेवक हलधर दास महापात्र ने 21 जून को एक प्रमुख अनुष्ठान के दौरान भगवान जगन्नाथ को अर्पित किए जाने से पहले मंदिर के से 70 मोदकों के रहस्यमय ढंग से गायब होने की लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत के बाद मंदिर परिसर में व्यापक बहस और सार्वजनिक असंतोष देखने को मिला।
डॉ. पाढ़ी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि बडॉग्राही द्वारा लगाए गए दावे ठोस और निर्णायक साक्ष्यों पर आधारित नहीं हैं। इस विषय पर गहराई से जांच की जाएगी। हम सीसीटीवी फुटेज और अभिलेखों की समीक्षा कर यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या वास्तव में कोई अनियमितता हुई है।
उन्होंने आश्वस्त किया कि यदि जांच में कोई दोषी पाया जाता है, तो मंदिर के नियमों के अनुसार उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।
एसजेटीए प्रमुख ने यह भी कहा कि गोपनीय अनुष्ठानों और मंदिर की आंतरिक प्रक्रियाओं को सार्वजनिक मंचों पर चर्चा का विषय बनाना अनुचित है। उन्होंने कहाकि हम सभी सेवकों और संबंधित पक्षों से अनुरोध करते हैं कि वे गुप्त अनुष्ठानों को सार्वजनिक रूप से न उठाएं।
डॉ. पाढ़ी ने पश्चिम बंगाल के दीघा ले जाए जाने या मोदकों की बिक्री जैसी अफवाहों पर भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इन सभी आरोपों की विस्तृत जांच की जाएगी और रिपोर्ट मांगी जाएगी। अगर कोई दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
हालांकि मंदिर प्रशासन सतर्कता और प्रक्रियात्मक तरीके से इस मुद्दे से निपट रहा है, लेकिन सांस्कृतिक विशेषज्ञों, श्रद्धालुओं और सेवक समुदायों की ओर से इस विवाद का पारदर्शी और शीघ्र समाधान निकालने की मांग जोर पकड़ रही है।
यह घटना केवल कथित चोरी तक सीमित नहीं रही, बल्कि इससे जुड़ी अनुष्ठानिक मर्यादा, आंतरिक संवाद की विफलता और प्रशासनिक उत्तरदायित्व जैसे मुद्दे भी उजागर हुए हैं।
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, श्रद्धालु समुदाय की नजरें प्रशासन पर टिकी हैं कि वह किस तरह भगवान जगन्नाथ के पवित्र अनुष्ठानों की गरिमा को बनाए रखते हुए जनविश्वास को कायम रखता है।

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