अशोक पांडेय,
भुवनेश्वर। सृष्टि के आदि, मध्य और अंत के नियंता भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा आगामी 27 जून को अर्थात् आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भारत के अन्यतम धाम गुरुषोत्तम धाम के बड़दण्ड पर अनुष्ठित होगी, जिसकी सभी तैयारियां श्रीमंदिर प्रशासन तथा ओडिशा राज्य सरकार की ओर से पूरी कर ली गई हैं। श्रीमंदिर के रत्नसिंहासन पर विराजमान भगवान जगन्नाथ जी साक्षात ऋग्वेद स्वरुप हैं, बलभद्रजी सामवेद, सुभद्राजी अथर्वेद तथा सुदर्शनजी यजुर्वेद हैं।
वे स्वयं में सम्पूर्ण सृष्टि के आदि हैं, मध्य हैं और अंत हैं। वे 16 कलाओं से पूर्ण अवतारी हैं। वे अपने आप में अनंत हैं, असीम हैं, अव्यक्त हैं, मुक्तिदाता हैं। वे ही साक्षात लोकेश्वर हैं, अनाथों के नाथ हैं, सर्वस्व और सर्वव्यापी हैं। वे स्वयं में सर्वशक्तिमान हैं, सर्वज्ञ हैं और अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता और नियामक भी हैं। वे अपने देवविग्रह रुप में वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर, गाणपत्य, बौद्ध, जैन और नीलमाधव हैं। वे असंख्य सूर्यों के समाहार हैं। उनके दो अपलक नेत्र स्वयं में सूर्य-चन्द्र हैं। वे अपने सच्चे भक्तों की आशा और विश्वास के आधार हैं। वे लीलामय नीलाद्रिविहारी हैं। वे अपनी समस्त लौकिक और अलौकिक मानवीय लीलाओं के माध्यम से विश्व मानवता का प्रतिपल मार्गदर्शन करते हैं।
भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा उनके प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेवजी के साथ-साथ उनके समस्त सेवायतों तथा विश्व के समस्त भक्तों के लिए उनके प्रति सच्ची श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आत्मनिवेदन, आत्मीयता एवं सभी प्रकार के आत्मअहंकार के त्याग का एक अनूठा भाव महोत्सव है, सांस्कृतिक महोत्सव है, पतितपान समारोह है तथा समस्त सभ्यताओं, संस्कृतियों तथा सम्प्रदायों का महामिलन है। यह महोत्सव सनातनी शाश्वत तथा दिव्य जीवन मूल्यों की रक्षा का पावन संदेश है।
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भारतीय आत्मचेतना का शाश्वत व जीवंत प्रमाण है।पद्मपुराण के अनुसार आषाढ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि सभी कार्यों के लिए सिद्धिदात्री पुण्यतम तिथि होती है।भगवान जगन्नाथ शबर जनजातीय समुदाय से जुडे हैं और शबर समुदाय में यह लौकिक प्रथा है कि उनके देवता काठ के होते हैं वह भी पवित्र काठ के। शबर समुदाय उनकी पूजा गोपनीय रुप में करते हैं।
स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान जगन्नाथ स्वयं कहते हैं कि जहां सभी लोग मेरे नाम से प्रेरित होकर एकत्रित होते हैं, मैं वहां पर अवश्य विद्यमान रहता हूं।यह उनकी रथयात्रा आत्मीयता का शंखनाद है।
वास्तव में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भक्त के शरीर तथा आत्मा का मेल है।रथयात्रा आत्मावलोकन की प्रेरणा देती है।स्कन्द पुराण, ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण तथा नारद पुराण आदि में भगवान जगन्नाथ तथा उनकी सांस्कृतिक नगरी शंखक्षेत्र व श्रीजगन्नाथपुरी का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
भगवान जगन्नाथ सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार, व्यक्त-अव्यक्त और लौकिक-अलौकिक के प्रत्यक्ष समाहार स्वरुप हैं।वे आनन्दमय चेतना के प्रतीक हैं। उनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा धर्म, भक्ति और दर्शन की त्रिवेणी है।रथयात्रा के दिन श्रीहरि नारायण भगवान जगन्नाथ अपने वैसे नर भक्तों से मिलने के लिए अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा करते हैं जिनको श्रीमंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं होती है।भगवान जगन्नाथ भक्तों की अटूट आस्था एवं विश्वास के देवाधिदेव हैं जिनके रथयात्रा के दिन रथारुढ रुप को देखकर मोक्ष मिलता है।
रथयात्रा के दिन श्रीमंदिर में सबसे पहले मंगल आरती होती है।मयलम, तडपलागी, रोसडा भोग, अवकाश, सूर्यपूजा, द्वारपाल पूजा, शेष वेश, गोपालवल्लव भोग(खिचडी भोग) , सकल धूप, सेनापटा लागी, पहण्डी, छेरापहंरा, घोडालागी रीति-नीति होती है और उसके उपरांत आरंभ होती हरि बोल तथा जय जगन्नाथ के गगनभेदी जयकारे के साथ भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा। रथयात्रा में भक्तगण ही तीनों रथों को अपने-अपने हाथों से खींचकर गुण्डीचा मंदिर लाते हैं।नंदिघोष रथ भगवान जगन्नाथ का रथ होता है, , तालध्वज बलभद्र जी का रथ और देवी सुभद्रा जी का रथ देवदलन होता है।
रथयात्रा के दिन चतुर्धा देवविग्रहों को पहण्डी विजय कराकर उन्हें रथारुढ किया जाता है।देवविग्रहों के रथारुढ कराने के उपरांत पुरी गोवर्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर तथा पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग अपने परिकरों के साथ पधारकर तीनों रथों का अवलोकन करते हैं तथा चतुर्धा देवविग्रहों को अपना आत्मनिवेदन प्रस्तुत करते हैं।उसके उपरांत पुरी के गजपति महाराजा श्रीश्री दिव्य सिंहदेवजी भगवान जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक के रुप में अपने राजमहल श्रीनाहर से पालकी में पधारकर तीनों रथों पर छेरापहंरा करते हैं।जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक के रुप में अपना आत्मनिवेदन प्रस्तुत करते हैं।रथों के साथ घोडों को जोडा जाता है। तब आरंभ होती है हरिबोल तथा जय जगन्नाथ के साथ भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा जिसे देखने के लिए स्वर्ग से देवतागण भी प्रतीक्षारत होते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ अपने भक्त सालबेग की मनोकामना को पूर्ण करने हेतु भी अपनी रथयात्रा करते हैं।रथयात्रा के दौरान जगन्नाथ जी अपनी मौसी मां के हाथों से तैयार पूडा-पीठा ग्रहण करते हैं।वे गुण्डीचा मंदिर में सात दिनों तक विश्राम करते हैं।गुण्डीचा मंदिर में सात दिनों तक गुण्डीचा महोत्सव मनाया जाता है।