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ओडिशी की प्रस्तुति ने बांधा समां
कोणार्क। 35वें कोणार्क महोत्सव के तीसरे दिन की शाम भारतीय शास्त्रीय नृत्य की मनमोहक प्रस्तुतियों से सजी। 13वीं सदी के सूर्य मंदिर की अद्भुत पृष्ठभूमि ने इस सांस्कृतिक उत्सव को और भी भव्य बना दिया।
शाम का शुभारंभ पुरी गजपति महाराजा दिव्यसिंह देव ने दीप प्रज्वलित कर किया। उनके साथ विधि, उत्पाद और निर्माण मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन, प्रसिद्ध मर्दला गुरु धनेश्वर स्वाईं और अन्य गणमान्य अतिथि मौजूद रहे।
पहले सत्र में कोलकाता के दरपणी समूह के गुरु अर्णव बंदोपाध्याय और उनके साथियों ने ओडिशी नृत्य की प्रस्तुति दी। उन्होंने जयदेव कृत गीत गोविंद से ‘सृता कमल कुच मंडला’ के साथ शुरुआत की, जो भगवान विष्णु की दिव्य सुंदरता का वर्णन करता है। इसके बाद ‘हंसध्वनि पल्लवी’ की शुद्ध नृत्य प्रस्तुति दी गई, जिसमें जटिल ताल और लयबद्ध गति का प्रदर्शन किया गया। प्रस्तुति का समापन ‘कृष्ण कथा’ से हुआ, जो भगवान कृष्ण की रक्षक, सृजनकर्ता और मार्गदर्शक की भूमिकाओं को दर्शाता है।
गुरु अर्णव बंदोपाध्याय द्वारा कोरियोग्राफ इन प्रस्तुतियों में पंडित भुवनेश्वर मिश्र और हिमांशु शेखर स्वाईं के संगीत ने समा बांध दिया।
मोहिनीअट्टम ने जगाई श्रद्धा और प्रेम
दूसरे सत्र में अमेरिका से आईं गुरु डॉ सुनंदा नायर और उनके समूह ने मोहिनीअट्टम नृत्य की प्रस्तुति दी। उन्होंने ‘गणपत्य तल्लम’ से शुरुआत की, जो भगवान गणेश को समर्पित था। इसके बाद ‘कार्तियायनी देवी’ और ‘मधुराष्टकम’ की प्रस्तुति हुई, जो भगवान कृष्ण के दिव्य माधुर्य की स्तुति करती है। गुरु डॉ सुनंदा नायर की कोरियोग्राफी ने मोहिनीअट्टम की कोमलता और गहराई को बखूबी उकेरा।
रेत कला उत्सव में सृजन का अद्भुत प्रदर्शन
चंद्रभागा समुद्र तट पर चल रहे 14वें अंतर्राष्ट्रीय रेत कला उत्सव में भी कलाकारों ने बौद्ध धरोहर और शांति व पर्यटन के विषयों पर अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कलाकारों की ये अद्भुत कलाकृतियां दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रही हैं।
उल्लेखनीय अतिथि
इस आयोजन में पर्यटन विभाग के अतिरिक्त निदेशक श्री बिस्वजीत राउत्रे, ओटीडीसी लिमिटेड के महाप्रबंधक डॉ ललातेंदु साहू और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।