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समाज और राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण – सूर्यवंशी सूरज

  • शिक्षा का भारतीयकरण, शिक्षकों में भारतीयता व कर्तव्यबोध का भाव निर्माण करने में लगा है शैक्षिक महासंघ – महेन्द्र कपूर

भुवनेश्वर। समाज और राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। शिक्षक ही कच्चे माटी को जीवन का आधार देते हैं। इसलिए देश को परम वैभव के शिखर पर पहुंचाने के लिए शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभाना होगा। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा आयोजित वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में भाग लेते हुए उच्च शिक्षा मंत्री सूर्यवंशी सूरज ने ये बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों और मैकॉले द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति भारतीय प्रतिभा को खत्म कर केवल क्लर्क तैयार करने के उद्देश्य से बनाई गई थी। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू किया गया है। इस नयी शिक्षा नीति से भारतीय स्व का जागरण हो सकेगा तथा देश को परम वैभव पर लिया जा सकेगा।
सूरज ने कहा कि शिक्षा के द्वारा ही समाज में परिवर्तन आ सकता है। इतिहास इस बात का साक्षी है शिक्षा व शिक्षाविदों के जरिये ही समाज में परिवर्तन के साथ साथ देश को नई दिशा दी गई है।
भुवनेश्वर के क्षेत्रीय शिक्षा प्रतिष्ठान में राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के ओडिशा प्रांत की प्रदेश सम्मेलन को संबोधित करते हुए महासंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर ने कहा कि शिक्षा का भारतीयकरण व शिक्षकों में भारतीयता का भाव निर्माण करने तथा शिक्षकों को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ बीते अनेक सालों से कार्य कर रही है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले वामपंथी व अन्य संगठनों की दृष्टि व राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की दृष्टि में मुलभूत अंतर है। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ राष्ट्र हित में शिक्षा, शिक्षा हित में शिक्षक व शिक्षक हित में समाज इस ध्येय वाक्य़ के साथ कार्य कर निरंतर कार्य कर रही है। 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होनेवाली है। ओडिशा में शैक्षिक महासंघ से जुडे प्रत्येक कार्यकर्ता संगठन को और मजबूत करने की दिशा में कार्य करें।
कपूर ने अपने संबोधन अपने संगठन के ध्येय वाक्य को और स्पष्ट करते हुए कहा कि शैक्षिक महासंघ का स्पष्ट मानना है कि शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जिसे सरकार व प्रशासन पर छोड़ा नहीं जा सकता। शिक्षा से संबंधित नीति में शिक्षकों को अपना अभिमत देना चाहिए। शिक्षा से जुड़े कोई भी विषय हो जैसे पाठ्यक्रम हो या अन्य कोई विषय उसमें शिक्षकों के मत लिया जाना चाहिए। साथ ही शिक्षकों को भी चाहिए कि वे कक्षा के सभी छात्र- छात्राओं से जीवंत संपर्क स्थापित करे तथा बच्चों के किसी प्रकार के संदेंह को दूर करे। बिना किसी भेदभाव के सभी बच्चों के शिक्षक देखे। शिक्षक य़दि ऐसा करते हैं तो समाज में शिक्षकों का स्थान प्राचीन भारतीय परंपरा में शिक्षकों जो स्थान रहा है वैसे हो जाएगा। साथ ही संगठन शिक्षकों मध्य अपने कर्तव्यवोध की भावना को जागृत करने के साथ साथ समाज व भारतीय पारंपारिक मूल्यों के प्रति भावना जागरुक करने का कार्य करता है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों के प्रतिभा में कैसे निखार आये, इसलिए भी संगठन कार्य करता है। इसी कारण प्रति वर्ष शैक्षिक महासंघ देश भर से दो शिक्षकों को श्रेष्ठ शिक्षक के रुप में पुरस्कार प्रदान करती है। इससे अन्य शिक्षकों को भी ऐसा बनने का प्रेरणा मिलता है।
इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष महेन्द्र कुमार, राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्य डा नारायण मोहंती व अन्य लोग उपस्थित थे।

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