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ईश्वर चंद्र विद्यासागर थे महान समाज सुधारक

  • जयंती पर श्रद्धांजलि, मुख्यमंत्री और केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने किए नमन

भुवनेश्वर। ईश्वर चंद्र विद्यासागर महान समाज सुधारक थे। ईश्वर चंद्र विद्यासागर की जयंती पर आज मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि। समाज में प्राथमिक शिक्षा को प्राथमिकता देने, छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाने और सामाजिक सुधार लाने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी सोशल मीडिया पर अपने संदेश में विद्यासागर जी को भारतीय पुनर्जागरण के पितामह बताते हुए कहा कि उनकी शिक्षा और सामाजिक न्याय के प्रति निष्ठा ने समाज को नई दिशा दी। विद्यासागर जी के प्रगतिशील विचार आज भी प्रासंगिक हैं, और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उनके शैक्षिक दर्शन से प्रेरित है, जो समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास करती है। उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर को शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए सदैव याद किया जाता रहेगा।

उल्लेखनीय है कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर (1820-1891) एक महान भारतीय समाज सुधारक, शिक्षाविद, और लेखक थे, जिन्होंने 19वीं सदी में बंगाल के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था और उन्हें शिक्षा और समाज सुधार के प्रति उनकी निष्ठा के लिए जाना जाता है। विद्यासागर ने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अद्वितीय कार्य किए और विधवा पुनर्विवाह की पैरवी की, जिससे समाज में प्रचलित कुरीतियों के खिलाफ क्रांतिकारी बदलाव लाने में मदद मिली। उनकी अद्वितीय विद्वता और सरल जीवनशैली ने उन्हें विद्या और नैतिकता का प्रतीक बना दिया।

विद्यासागर की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक उनकी शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने की कोशिशें थीं। उन्होंने संस्कृत कॉलेज में पढ़ाई के दौरान शास्त्रीय शिक्षा में सुधार की आवश्यकता को पहचाना और आधुनिक विषयों को जोड़कर इसे और प्रासंगिक बनाने का प्रयास किया। उनका मानना था कि शिक्षा ही समाज की बेहतरी का सबसे मजबूत माध्यम है, जो अंधविश्वास और सामाजिक अन्याय को समाप्त कर सकती है। उनके इन्हीं विचारों ने उन्हें बंगाल में शिक्षा और समाज सुधार का अगुआ बना दिया और वे आज भी प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं।

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