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Arabinda Dhali

विधानसभा की सदस्यता रद्द करने को चुनौती देंगे अरविंद ढाली

  • दल-बदल कानून को लेकर विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को लेकर जाएंगे हाईकोर्ट

भुवनेश्वर। दल-बदल विरोधी कानून के तहत ओडिशा विधानसभा से सदस्यता रद्द किये जाने के फैसले को  विधायक अरविंद ढाली चुनौती देंगे। विधायक के रूप में अपनी अयोग्यता को रद्द किये जाने को अन्यायपूर्ण और पक्षपातपूर्ण बताते हुए वरिष्ठ नेता अरविंद ढाली ने कहा कि वह विधानसभा अध्यक्ष के आदेश को चुनौती देने के लिए कानूनी कदम उठाएंगे।

भुवनेश्वर में भाजपा की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में पत्रकारों से बात करते हुए ढाली ने कहा कि वह विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ जल्द ही उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे।

उल्लेखनीय है कि ढाली जयदेव विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे और हालही में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) छोड़ने के बाद चुनाव पूर्व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गये। इसके बाद उन्हें आगामी चुनावों के लिए जयदेव विधानसभा सीट से भाजपा ने उम्मीदवार नामित किया है।

मंशा पर उठाये सवाल

ढाली ने कहा कि उनकी विधानसभा सदस्यता किसी गलत मंशा से रद्द की गयी है और यह कार्रवाई पक्षपातपूर्ण तरीके से की गयी है। उन्होंने दावा किया कि केवल बीजद छोड़कर भाजपा में शामिल होने वालों को विधायक के रूप में अयोग्य घोषित किया गया है, लेकिन यही नियम दूसरों पर लागू नहीं किया गया है।

विधायक प्रेमानंद नायक की सदस्यता भी हुई है रद्द

ओडिशा विधानसभा अध्यक्ष ने बीते गुरुवार को दल-बदल विरोधी कानून के तहत दो विधायकों प्रेमानंद नायक और अरविंद ढाली को अयोग्य घोषित कर दिया और उनकी सदस्यता को रद्द कर दी। ये दोनों सत्तारूढ़ बीजद छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। ढाली जयदेव निर्वाचन क्षेत्र से विधायक थे, वहीं नायक तेलकोई से विधायक थे।

प्रशांत मुदुली ने की थी मांग

बीजद विधायक प्रशांत कुमार मुदुली ने 18 मार्च को भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के पैराग्राफ 8 के तहत बनाए गए ओडिशा विधानसभा के सदस्यों (दल-बदल के आधार पर अयोग्यता) के नियम, 1978 के नियम 6 के तहत एक याचिका दायर की थी और इन दोनों सदस्यों को अयोग्य ठहराने की मांग की थी, क्योंकि उन्होंने स्वेच्छा से बीजद की प्राथमिक सदस्यता छोड़ दी थी, जिसके टिकट पर वे विधानसभा के लिए चुने गए थे।

पक्ष रखने को मौका नहीं मिला

ढाली ने कहा कि अयोग्य घोषित किये जाने से पहले उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। पक्ष सुने बिना एकतरफा फैसला लिया गया है।

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