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गुणवत्ता युक्त पढ़ाई के लिए बने हुए हैं यही सहारा
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कोई ऐसा स्कूल नहीं, जिसका छात्र न जाता हो इंस्टीट्यूट
हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर। वक्त के साथ-साथ बच्चों पर बढ़ते पढ़ाई के बोझ को करने के लिए इंस्टीट्यूट-ट्यूटर को स्कूली दर्जा दिए जाने की जरूरत है। यदि ऐसा किया जाता है तो उन्हें भी सर्टिफिकेट प्रदान कर सकते हैं और उन प्रमाणपत्रों की मान्यता वैध होगी। वैसे भी अब नई शिक्षा नीति में कौशल पर फोकस दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति में यदि ट्यूशन और इंस्टीट्यूट को स्कूलों की तरह मान्यता प्रदान किया जाता, तो बच्चों का कौशल विकास के लिए अधिक समय मिलेगा और अविभावकों पर पड़ने वाला दोहरा वित्तीय बोझ भी घटेगा।
किताबों में उलझ गया है बचपन
आज के समय में बच्चे किताबों की बोझ तले दब गए हैं। सुबह से लेकर रात तक सिर्फ पढ़ाई और पढ़ाई के बीच वह चक्कर काट रहे हैं। जिस तरह से सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए स्कूलों में जाना बच्चों के लिए मजबूरी है, उसी तरह से नंबर हासिल करने के लिए बच्चों को ट्यूशन और इंस्टीट्यूट का सहारा लेना पड़ता है। बच्चों के पास उनको अपना बचपन जीने के लिए कोई समय नहीं बचता है। सुबह में हमवर्क से इन बच्चों की दिनचर्या की शुरुआत होती है और उसके बाद विद्यालय जाना। फिर लौट कर आने के बाद इंस्टीट्यूट और ट्यूशन के लिए भागना और वापस घर लौटकर विद्यालय और इंस्टीट्यूट का होमवर्क है। आज बच्चो की जिंदगी सिर्फ कॉपी किताब में सिमट कर रह गई है।
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तेजी से आगे विकास रहे हैं इंस्टीट्यूट
आजकल इंस्टीट्यूट काफी तेजी से विकास कर रहे हैं। आज यह एक सेक्टर का रूप धारण करता नजर आ रहा है। हालही में खुले कुछ इंस्टीट्यूट्स ने अपनी पहचान बाजार में स्थापित कर ली है और इनके पास बड़े-बड़े स्कूलों के बच्चे ट्यूशन पढ़ने आते हैं।
क्या स्कूलों से घट रहा अविभावकों का भरोसा
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित किसी भी इंस्टीट्यूट में आप जाइए और देखिए वहां की स्थित। सभी इंस्टीट्यूट छात्रों से भरे हुए हैं। इससे यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या स्कूलों की पढ़ाई से भरोसा उठ गया है। यदि इंस्टीट्यूट छात्रों से भरे हुए हैं, तो सवाल का जवाब ढूढने में काफी कठिनाई नहीं है।
इंस्टीट्यूट ही सहारा, तो दोहरी फीस क्यों?
अब सवाल उठता है कि बच्चों की पढ़ाई की गुणवत्ता इंस्टीट्यूट के सहयोग पर निर्भर है, तो इंस्टीट्यूट-ट्यूटर को स्कूली दर्जा जैसी मान्यता प्रदान करना वक्त की मांग तो बनती है। सरकार को भी इस मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, क्योंकि एक ही कक्षा में एक चैप्टर पढ़ने के लिए दो जगहों (एक विद्यालय और एक इंस्टीट्यूट या ट्यूटर) पर फीस क्यों? यह दोहरा फीस आज लगभग सभी वर्ग के लिए न सिर्फ सिरदर्द बना हुआ, अपितु वित्तीय बोझ तले ढकेल रहा है। ऐसी स्थिति में इंस्टीट्यूट और ट्यूटर को स्कूलों जैसी मान्यता प्रदान करते हुए उन्हें प्रमाणपत्र जारी करने की अनुमति प्रदान की जाए, जिससे कि बच्चों का समय बचे और अपने बचपन की जिंदगी खिलखिलाकर हंसते हुए जी सकें और अविभावकों का वित्तीय बोझ घट सके।