-
वसीयत में जताई गई इच्छा अनुसार हिंदुओं की तरह हुआ का अंतिम संस्कार
-
इसाई परिवार में हुआ था ओडिशा के प्रख्यात साहित्यकार का जन्म
-
राजकीय सम्मान के साथ दी गई अंतिम विदाई
कटक। अपनी रचनाओं के लिए ओडिशा के प्रख्यात साहित्यकार और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि जयंत महापात्र का निधन रविवार को कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में इलाज के दौरान हो गया। वह 95 वर्ष के थे। मरणोपरांत सोमवार को उनकी घर वापसी उस समय हुई, जब उनका अंतिम संस्कार हिन्दुओं की तरह किया गया। आज सोमवार को उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, यहां कटक के खान नगर श्मशान में परिवार, दोस्तों, शुभचिंतकों और साहित्यिक जगत की कई हस्तियों के बीच पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
इस मौके पर कृषि एवं किसान अधिकारिता मंत्री रणेंद्र प्रताप स्वाईं, कटक कलेक्टर भवानी शंकर चयनी और कटक विकास प्राधिकरण (सीडीए) के अध्यक्ष अनिल सामल समेत काफी संख्या में लोगों ने महान कवि को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और अंतिम विदाई दी। महान कवि महापात्र जन्म से ईसाई थे, लेकिन उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद हिंदुओं की तरह अंतिम संस्कार करने की इच्छा व्यक्त की थी। बताया गया है कि उन्होंने अपनी वसीयत में इसका स्पष्ट उल्लेख किया था। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, महापात्रा निमोनिया से पीड़ित थे। महापात्र के निधन को लेकर साहित्य जगत के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों और नेताओं ने शोक जताया है।
1866 के विनाशकारी अकाल के दौरान ईसाई धर्म अपनाया
बताया जाता है कि कवि जयंत महापात्र के दादा-दादी ने ओडिशा प्रांत में 1866 के विनाशकारी अकाल के दौरान ईसाई धर्म अपना लिया था। कवि की पत्नी और उनके इकलौते बेटे की पहले ही मृत्यु हो चुकी है।
अंग्रेजी कविता के लिए जीता साहित्य अकादमी पुरस्कार
वह अंग्रेजी कविता के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय कवि थे। उन्होंने ‘इंडियन समर’ और ‘हंगर’ जैसी कविताएं लिखीं, जिन्हें आधुनिक भारतीय अंग्रेजी साहित्य में क्लासिक्स माना जाता है।
विरोध स्वरूप लौटा था पद्मश्री
महापात्र को साहित्य में उनके योगदान के लिए साल 2009 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। हालांकि, उन्होंने समाज के ताने-बाने को नष्ट करने वाली नैतिक विषमता के खिलाफ असहमति व्यक्त करने के लिए पुरस्कार लौटा दिया।