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भक्तों की आस्था पूरा करने के लिए भगवान जगन्नाथ ने दिया मौका
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बड़दांड में रथों के साथ रातभर मौजूद रहे भक्त
पुरी। विश्वविख्यात रथयात्रा के दौरान महाप्रभु श्री जगन्नाथ और भक्तों के बीच अजीब लीला देखने को मिली। कहा जाता है कि साल में एक बार महाप्रभु रथयात्रा के दिन बिना भेदभाव के सार्वजनिक दर्शन देने के लिए मंदिर से निकलते हैं और मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। कल मंगलवार को भी महाप्रभु श्री जगन्नाथ रथ पर आरूढ़ होकर भाई देव बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ सार्वजनिक दर्शन के लिए निकले। कल बड़दांड भक्तों की भीड़ से खचाखच भरा हुआ था। तिल रखने के लिए भी कहीं जगह नहीं थी। श्रद्धा से ओतप्रोत भक्तों के बीच रथों को खींचने के लिए होड़ लग गई थी, जिसमें 200 से अधिक भक्त घायल भी हो गए थे। कइयों को रथ के रस्से को पड़ने के मौका भी नहीं मिला, लेकिन उनकी आस्था रंग लाई। देव बलभद्र का रथ कल ही गुंडिचा मंदिर पहुंच गया, लेकिन देवी सुभद्रा और महाप्रभु श्री जगन्नाथ के रथ श्रीमंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच में रोकने पड़े। कारण भीड़, विलंब और रात थी, लेकिन भक्त इसे भगवान की महिमा और लीला मान रहे हैं।
रथयात्रा में शामिल होने आए भक्तों का कहना है कि श्री जगन्नाथ महाप्रभु अपने कुछ भक्तों को दर्शन देने के लिए ही बड़दांड में रूक गए और जिन्हें कल रथ खींचने का मौका नहीं मिला था और उनकी जिनकी इच्छा अधूरी थी, उसे आज पूरा करने का अवसर महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने दिया।
प्रभु जगन्नाथ के रथ के खींचने की प्रक्रिया शुरू होते ही पूरा बड़दांड जय जगन्नाथ के जयकारे से गूंजयमान हो गया। भक्तों का कहना था कि हमने भी बड़दांड में ही अपनी रात गुजारी है, क्योंकि हमारे महाप्रभु हमारे लिए बड़दांड में रूके हैं। ऐसे में हम कैसे यहां से चले जाते। मंगलवार की तरह बुधवार को भी रथ खींचने के लिए भक्तों में भी वही उल्लास देखने को मिला है।
गौरतलब है कि देवी सुभद्रा जी का दर्पदलन रथ बड़शंख के पास, तो भगवान जगन्नाथ जी का नंदीघोष रथ मौसी मां चौक के पास रूक गया था। ऐसे में आज दोनों ही रथों को खींचकर गुंडिचा मंदिर ले जाया गया।