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हजारों वर्षों है पुराना
जाजपुर जिले के बड़ाचना ब्लॉक के चंडितला गांव के पास एक प्राचीन बावड़ी मिला है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) ने इसकी खोज की है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस बावड़ी को डेढ़ासुर-भाईबोहू कुआ के नाम से जाना जाता है और यह पिछले हजारों वर्षों से इस क्षेत्र में अस्तित्व में है। बताया जाता है कि गहरे नीले पानी वाला प्राचीन बावड़ी गांव के पास एक जंगल के अंदर स्थित है।
नीचे उतरने के लिए 33 सीढ़ियां
बताया जाता है कि इस कुएं में उतरने के लिए 33 सीढ़ियां हैं। इसमें से पानी निकालने के लिए नीचे उतरना पड़ता है। इसकी सीढ़ियां प्राचीन कुएं की विशेषताओं में से एक है। कुएं में एक पीतल का दरवाजा लगाया गया था, जो अब मौजूद नहीं है।
एक समृद्ध इतिहास है
स्थानीय निवासियों के अनुसार, इस प्राचीन बावड़ी के पीछे एक समृद्ध इतिहास है। केवल एक विस्तृत शोध ही इसके बारे में अधिक गुप्त तथ्यों को उजागर कर सकता है। 80 फीट नीचे इस बावड़ी से सीढ़ियों से नीचे चलकर पानी लाया जा सकता है। दो व्यक्ति एक-दूसरे से टकराए बिना कुएं से पानी भर सकते हैं। इसलिए प्राचीन कुएं को ‘डेढ़ासुर-भाईबोहू कुआ’ के नाम से जाना जाता है।
बावड़ी कलिंग स्थापत्य शैली का एक अनूठा उदाहरण
इंटेक के अधिकारियों ने कहा कि प्राचीन बावड़ी कलिंग स्थापत्य शैली का एक अनूठा उदाहरण है। इंटेक परियोजना समन्वयक अनिल धीर ने कहा कि हमने ओडिशा में लगभग 40 सीढ़ीदार कुओं का दस्तावेजीकरण किया है। हालांकि, हमने राज्य में इस तरह का बावड़ी कभी नहीं देखा है। इसका विशाल आकार, गहराई, निर्माण शैली और प्रयुक्त सामग्री अद्वितीय हैं। प्राचीन बावड़ी की स्थिति अभी भी बहुत अच्छी है।
लैटेराइट पत्थरों से है बना
इंटेक परियोजना समन्वयक अनिल धीर ने कहा कि 120 फीट की लंबाई और 35 फीट की चौड़ाई वाले विशाल बावड़ी का निर्माण लैटेराइट पत्थरों से किया गया है। हालांकि राज्य के कई हिस्सों में कई सीढ़ीदार कुएं पाए जाते हैं, यह प्राचीन और सबसे बड़ा है।