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लंपी वायरस को लेकर गाइडलाइन जारी

  • वर्ष 2019 के दौरान पहली बार ओडिशा में सामने आया था पहला मामला

  • राज्य सरकार ने पहले से की पूरी तैयारी, क्या करें और क्या नहीं करें को लेकर विस्तृत गाइडलाइन जारी

भुवनेश्वर। देशभर में पशुओं पर कहर बरपा रहे लंपी वायरस को लेकर ओडिशा के मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास विभाग ने सभी मुख्य जिला पशु चिकित्सा अधिकारियों को एक सलाह जारी की है। विभाग ने कहा कि यह रोग पहली बार वर्ष 2019 के दौरान ओडिशा में सामने आया था। उस समय 24 जिले प्रभावित हुए थे। उस दौरान 145 उपकेंद्रों में कुल 5702 जानवर प्रभावित हुए था, जिसमें से 17 पशुओं की मौत हो चुकी है। गोट पॉक्स के टीके से कुल 3320 पशुओं का टीकाकरण किया गया था। लंपी स्कीन डिजिड (एलएसडी) का पहला मामला 28 जून, 2019 को और आखिरी मामला 12 दिसंबर, 2019 को दर्ज किया गया था। उसके बाद राज्य में आज तक एलएसडी का कोई मामला सामने नहीं आया।
देश के 20 राज्यों में फैला है प्रकोप
देश के 20 से अधिक राज्यों, विशेष रूप से भारत के उत्तरी भागों में एलएसडी के मौजूदा प्रकोप फैला हुआ है। इसको देखते हुए राज्य के मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास विभाग ने ओडिशा में बीमारी की घटना की रोकथाम के लिए रणनीतियों तैयार की है।
बीमारी होने से पहले के निवारक उपाय
राज्य के मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास विभाग ने ओडिशा में इस बीमारी के शुरू होने से पहले जन जागरूकता पर जोर दिया है। इसके साथ-साथ राज्य की सीमा से 5 किमी के दायरे में सीमावर्ती ब्लॉकों और गांवों की पहचान करने को कहा है। साथ ही बताया है कि सीमावर्ती ब्लॉकों में निवारक टीकाकरण के लिए टीकों की खरीद की गई है और जरूरत पड़ने पर वितरित की जायेगी। जिला प्रशासन द्वारा सीमावर्ती प्रखंडों में अंतर्राज्यीय पशुओं की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने को भी कहा गया है। जीवित मवेशियों के व्यापार को अस्थायी रूप से रोक लगायी जा सकती है। पशु मेला, पशु के शो में भाग लेना अस्थायी रूप से बंद करने को कहा गया है।
जागरुकता के लिए अभियान चलाने पर जोर
राज्य सरकार ने लंपी वायरस के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया हैंडल, समाचार पत्रों और एमवीएलआई विभाग के माध्यम से पूरे राज्य में जन-जागरूकता पैदा करने का काम शुरू करने को कहा है। इसके साथ ही रोग और इसकी रोकथाम के उपायों के बारे में पशु चिकित्सक, पैरावेट, गो-मित्र, प्राणी-मित्र और पीआरआई सदस्यों को संवेदनशील बनाने को कहा गया है, ताकि वे हालात पर नजर रख सकें। इसके साथ ही जानवरों के लिए एक्टो-पैरासिटिसिडल दवाओं के सामयिक अनुप्रयोग जैसे वेक्टर नियंत्रण उपायों को अपनाना की सलाह दी गयी है। इसके साथ-साथ पशु-शेड और परिसर को कीटाणु मुक्त करने के लिए 2-3% सोडियम हाइपोक्लोराइट घोल का प्रयोग करने को कहा गया है।
बीमारी होने के बाद रोकथाम के उपाय
यदि राज्य में लंपी वायरस का प्रकोप शुरू होता है, तो इसके लिए भी गाइडलाइन जारी की गयी है। इसके तहत सभी मामलों के ठीक होने तक प्रभावित इलाकों का नियमित रूप से क्षेत्र के पशु चिकित्सकों, पैरा पशु चिकित्सकों दौरा करेंगे। प्रभावित गांवों और उसके आसपास के गांवों में दैनिक निगरानी तेज की जायेगी। घरों में बीमारी के प्रसार से बचने के लिए एहतियाती स्वच्छता उपाय करने की सलाह दी गयी है। प्रभावित जानवरों से निपटने वाले व्यक्तियों को हाथ में दस्ताने और चेहरे पर मास्क पहनने को कहा गया है। इसके साथ-साथ भारत सरकार की सलाह के अनुसार संदिग्ध जानवरों से नमूनों का संग्रह करके पहले जिला डायग्नोस्टिक लैबोरेट्रीज (डीडीएल) और फिर पशु रोग अनुसंधान संस्थान (एडीआरआई) को भेजने के लिए कहा गया है।
उपचार के प्रोटोकॉल
बीमार पशुओं को संगरोध में रखा जायेगा। 5-7 दिनों के लिए व्यापक स्पेक्ट्रम उपयुक्त एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करने को कहा गया है। इसके साथ ही एनएसएआईडी, एंटीथिस्टेमाइंस का उपयोग करने तथा प्रभावित पशुओं को लिवर एक्सट्रैक्ट और मल्टीविटामिन देने की सलाह दी गयी है। साथ ही आइवरमेक्टिन के उपयोग पर विचार किया जा सकता है। घावों में फ्लाई रिपेलेंट प्रॉपर्टी के साथ स्प्रे, लोशन या मलहम का स्थानीय अनुप्रयोग किया जा सकता है। एक से दो सप्ताह के लिए इम्यूनोबूस्टर्स का प्रयोग हो सकता है। यदि मुंह में घाव होंगे तो ऐसे मामले में बोरोग्लिसरीन मलहम के साथ तरल आहार प्रदान किया जा सकता है। पशु चिकित्सकों की सिफारिश के अनुसार उपयुक्त रोगसूचक उपचार अपनाया जा सकता है। प्रजनन और उत्पादक मूल्यों की रक्षा के लिए विशेष देखभाल की जानी चाहिए।
शवों को ऐसे करना होगा दफन
राज्य के मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास विभाग ने पशुओं की मौत के बाद उनके शवों को दफन के लिए भी गाइडलाइन जारी की है। बताया गया है कि मृत पशुओं को नमक और चूने के साथ गहरे गड्ढे में दफनाया जाना चाहिए।

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