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स्वाध्याय आत्मा की खुराक – मुनि जिनेश कुमार
कटक. युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में पर्युषण पर्व का दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में हर्षोल्लासपूर्वक आयोजित हुआ। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित रहे।
पर्युषण पर्व आराधकों को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा स्वाध्याय अनुत्तर तप है। स्वाध्याय आत्मा की खुराक है। स्वाध्याय जीवन जीने की कला है। स्वाध्याय जीवन का विज्ञान है और अनजानी, अंधेरी पगडंडियों में प्रकाश द्वीप है। स्वाध्याय से भावों की शुद्धि व मन की पवित्रता बढ़ती है। स्वाध्याय से करणीय अकरणीय का बोध हो जाता है। स्वाध्याय आत्मोपलब्धि में सहायक है। स्वाध्याय करने से श्रुत की आराधना होती है। श्रुत की आराधना से अज्ञान क्षीण होता है और अनंत कर्मों की निर्जरा होती है। स्वयं को स्वयं से जानना स्वाध्याय है। अग्नि में स्वर्ण तपकर उज्ज्वलता को प्राप्त होता है उसी प्रकार स्वाध्याय से चित्त निर्मल होता है। उन्होंने आगे कहा अध्ययन के लिए एकाग्रता नियमितता व निर्विकारता का होना जरूरी है। जिस प्रकार पर्वत पर पानी नहीं ठहरता है उसी प्रकार स्वाध्याय
शील व्यक्ति के अशुद्ध कर्म शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। पर्युषण पर्व वृत्तियों के परिष्कार का पर्व है। पर्युषण आत्म-जागरण, आत्म-प्रकाश, आत्म-उत्थान व आत्म-अध्ययन का पर्व है। पर्युषण ज्ञान प्राप्ति का अनमोल पर्व है। मनुष्य जब तक अपूर्ण रहता है, तब तक अभिमान करता है, जबकि तत्व यह है कि अपूर्ण को अभिमान करने का अधिकार ही नहीं है। क्योंकि उनसे अधिक योग्यता वाले लोग भी मिल सकते हैं।
मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने भव परंपरा से गुजरते महावीर के पूर्व भवों में मरीचि के भव की चर्चा करते हुए कहा – अहंकार दुर्गति का कारण है। मरीचि ने कुल का अहंकार कर नीच गोत्र का बंधन कर लिया। इसीलिए सभी को अहंकार की कार से उतरकर विनम्रता के विमान में चढ़ना चाहिए।
इस अवसर पर मुनि श्री परमानंद जी ने कहा – पर्युषण परिवर्तन का पथ है। पर्युषण जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। पर्युषण में स्वाध्याय का विशेष महत्व है। स्वाध्याय जीवन को आलोकित करता है। बाल मुनि कुणाल कुमार जी ने स्वाध्याय गीत का सुमधुर संगान किया।