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किसानों के हित में ओडिशा हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

  •  30 साल तक सरकारी जमीन पर खेती करने वाला किसान स्वामित्व का अधिकार पाने का हकदार

भुवनेश्वर. ओडिशा के हाईकोर्ट ने किसानों के हित में एक ऐतिहासिक फैसला दिया है. उच्च न्यायालय ने कहा है कि 30 साल तक सरकारी जमीन पर खेती करने वाला कोई भी किसान स्वामित्व का अधिकार पाने का हकदार होगा. उच्च न्यायालय ने कहा कि ओडिशा सरकार को इस संबंध में एक प्रासंगिक नीति के साथ आना चाहिए.
हाईकोर्ट ने राज्य के कृषि विभाग को छह महीने के भीतर नीति तैयार करने का निर्देश दिया है और कहा है कि राज्य सरकार 23 फरवरी से पहले नीति लाये और तब तक संबंधित भूमि पर यथास्थिति बनी रहेगी.
काजू किसानों ने दी थी चुनौती
जगतसिंहपुर जिले के बालिकुड़ा ब्लॉक के कई काजू किसानों द्वारा दायर की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत का निर्देश आया है. साल 1983 से खेती कर रहे किसानों ने प्रशासन द्वारा दर्ज किये गये अतिक्रमण के मामले के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. याचिकाकर्ताओं ने करीब 30 साल पहले केंद्र की पुनर्वास योजना के तहत काजू के बागानों के लिए जमीन प्राप्त करने का दावा किया था. यह योजना राज्य सरकार द्वारा लागू की गई थी. इसके बाद अब जमीन खाली करने के लिए कहा गया था, जिसे लेकर उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
दो-दो एकड़ दी गयी थी भूमि
हलफनामे में बालिकुड़ा तहसीलदार ने उल्लेखित किया है कि केयूपड़ा, ब्राह्मणीडीही और तेंतुलिपादरी गांवों में लगभग 52 एकड़ भूमि की पहचान की गई थी. जिला मृदा संरक्षण विभाग ने काजू के रोपण के लिए फैसला किया था. इसके बाद फरवरी 1986 में कुल भूमि में से 2-2 एकड़ भूमि 26 लाभार्थियों को आवंटित की गई थी और तब से किसान भूमि पर काजू की खेती कर रहे हैं.
कोई स्वामित्व नहीं, दावा स्वीकार्य नहीं – तहसीलदार
तहसीलदार ने अपने हलफनामे में कहा है कि संबंधित लाभार्थियों का जमीन के पैच पर कोई स्वामित्व नहीं है और उनका दावा स्वीकार्य नहीं है. तहसीलदार ने कोर्ट से अतिक्रमण का मामला दर्ज कर हितग्राहियों से जुर्माना वसूलने की भी गुहार लगाई थी. बाद में हाईकोर्ट ने मार्च 2003 में याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. कोर्ट ने अपनी पिछली सुनवाई में इस बात पर नीति बनाने का निर्देश दिया था कि किस तरह से लाभार्थियों के नाम जमीन का पंजीकरण किया जा सकता है.
अपने जवाब में, राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि यदि भूमि याचिकाकर्ताओं के नाम पर पंजीकृत है, तो कई अन्य लोग भी इसी तरह के अनुरोध कर सकते हैं, जिन्हें सरकार द्वारा खेती के लिए भूमि प्रदान की गई होगी. सरकार भूमि का उपयोग अन्य लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए कर सकती है. हालांकि कोर्ट ने इस तरह के तर्क को खारिज कर दिया था.

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