भुवनेश्वर. जैन तेरापंथ धर्मसंघ की शासनमाता, महाश्रमणी संघ महानिर्देशिका, असाधारण साध्वी प्रमुख कनक प्रभा के महाप्रयाण को मुनि जिनेश कुमार ने अपूरणीय क्षति करार दिया है. उन्होंने कहा कि ऐसी प्रतिभाओं के जाने से कभी नहीं पूरा होने वाली एक शून्यता आ जाती है.
कनकप्रभा जी के गुणों को रेखाकिंत करते हुए मुनि जिनेश कुमार ने कहा कि कुछ लोग ज्ञान सम्पन्न होते हैं, किंतु शील सम्पन्न नहीं होते. कुछ लोग शील सम्पन्न होते हैं, किंतु ज्ञान सम्पन्न नहीं होते. कुछ लोग ज्ञान सम्पन्न भी होते हैं और शील सम्पन्न भी होते हैं. कुछ लोग न ज्ञान सम्पन्न होते हैं और न ही शील सम्पन्न होते हैं. जैन तेरापंथ धर्मसंघ की शासनमाता, महाश्रमणी संघ महानिर्देशिका, असाधारण साध्वी प्रमुख कनक प्रभा जी ज्ञान सम्पन्न भी थीं और शील सम्पन्न भी थीं. वह तेरापंथ धर्मसंध की आठवीं साध्वी प्रमुख थीं.
असाधारण साध्वी प्रमुख कनकप्रभा जी का जन्म एक साधारण बालिका की तरह वि. सं. 1998 श्रावण कृष्णा त्रयोदशी के दिन कोलकाता में हुआ. उनकी माता का नाम छोटी देवी व पिताजी का नाम सूरजमल जी बैद था. उन्होंने मात्र 15 वर्ष की उम्र अध्ययन हेतु पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रवेश किया. चार वर्ष अध्ययन के पश्चात् अणुव्रत अनुशास्ता राष्ट्रसंत आचार्य श्री तुलसी के मुख कमल से राजस्थान के केलवा में 19 वर्ष की उम्र में मुमुक्षु कला ने वि.स. 2017 आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा के दिन जैन साध्वी दीक्षा स्वीकार की. साध्वी बनने के बाद आचार्य तुलसी ने उनका नाम कनकप्रभा रखा.
मुनि जिनेश कुमार ने बताया कि साध्वी दीक्षा के पश्चात अपने आचार में सजग रहती हुईं आचार्य तुलसी के निर्देशन में चहुंमुखी विकास किया. उनकी योग्यताओं का अंकन करते हुए वि.सं. 2028, माघ कृष्ण त्रयोदशी के दिन गंगाशहर (राजस्थान) में आचार्य तुलसी ने साध्वी कनकप्रभा को तेरापंथ की आठवीं साध्वी प्रमुखा पद पर प्रतिष्ठित किया.
साध्वी प्रमुख कनक प्रभा जी ने अपने कर्तृत्व और व्यक्तित्व से धर्मसंघ की व मानव जाति की महनीय सेवा की वह साहित्यकार थीं. उन्होंने अपने जीवन में गद्य, पध, काव्य यात्रा संस्मरण आदि 51 पुस्तकों का आलेखन व 80 से अधिक ग्रंथों पुस्तकों का संपादन कर साहित्य भंडार को समृद्ध किया. वे कुशल संपादिका, कुशल लेखिका, कवियत्री थीं. वी प्रभावी प्रवचकार भी थीं. उनके वक्तृत्व में नित्य नवीनता के दर्शन होते थे. उनका संबोधन को सुनने के लिए जनता उत्कंठित रहती थी.
वह विदुषी साध्वी थीं. उनका अध्ययन गहरा व गंभीर था. उनकी विद्वता की धर्मसंघ में गहरी छाप थी. वह कुशल प्रशासिका थीं. वे आचार्य श्री के नेतृत्व में 500 से अधिक साध्वियों की मुखिया थीं. उन्होंने साध्वी समाज के आध्यात्मिक व शैक्षणिक विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया. वह अब तक हजारों साध्वियों की सार-संभाल में सहयोगी बनी हैं. वह नारी जाति की उन्नायक थीं. उन्होंने नारी समाज के उत्थान के लिए, उन्हें अन्धरुढ़ियों से मुक्त करने के लिए भरसक प्रयत्न किया.
वह गुरु इंगित के प्रति पूर्ण समर्पित थीं. वह गुरू दृष्टि की आराधना में सदैव सजग रहीं. उन्होंने पचास वर्ष तक साध्वियों की व्यवस्था का दायित्व संभालकर गुरुओं के भार को हल्का किया. वह अप्रमनत्त साधिका थीं. उनका खाद्य संयम वाणी संयम विशिष्ट था. वह निरंतर स्वाध्याय में रत रहती थीं. उनका कोमल, स्वभाव शांत व मृदु था. वह मिलनसार, दयालु, अनुशासन प्रिय, वात्सल्यमूर्ति थीं. उनके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति उनके व्यक्तित्व से अभिभूत हो जाता था. उन्होंने तेरापंथ के तीन आचार्यों, आचार्य तुलसी, आचार्य
महाप्रज्ञ, आचार्य महाश्रमण के नेतृत्व में 50 वर्ष से अधिक समय तक साध्वी प्रमुखा के पद को गौरवान्वित किया. उन्होंने अपने दायित्व को गरिमामय ढंग से निर्वहन किया. तेरापंथ धर्मसंघ के 250 वर्षों के इतिहास में 50 वर्ष तक इस पद को सुशोभित करने वाली यह पहली साध्वी प्रमुख थीं.
30 जनवरी 2022 को लाडनू में आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में साध्वी प्रमुखा पद के 50 वर्ष की सम्पन्नता पर अमृत महोत्सव चतुर्विध धर्मसंघ के मध्य आयोजित हुआ. आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अमृत महोत्सव के अवसर पर उनको शासन माता के अलंकरण से अलंकृत किया. पूर्व में उन्हें महाश्रमणी संघ महानिदेशिका असाधारण साध्वी प्रमुखा के अलंकरणों से अलंकृत किया जा चुका है.
जैन तेरापंथ धर्मसंघ की साध्वी प्रमुख श्री कनकप्रभा का महाप्रयाण