अशोक पाण्डेय, भुवनेश्वर
विश्व पंचायत, संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार 1995 की 09 अगस्त से प्रतिवर्ष विश्व पूरे विश्व में आदिवासी दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यूएन की घोषणानुसार विश्व के लगभग 195 देशों में से लगभग 90 देशों में कुल लगभग 37 करोड़ आदिवासी हैं. इनकी अपनी लगभग 7,000 आदिवासी भाषाएं हैं, जो इनके गरिमामय अस्तित्व की गाथा कहते हैं. ऐसे में यूएन ने विश्व आदिवासी समुदाय के अधिकारों की हिफाजत के लिए ही यह उद्घोषणा जारी की जिससे विश्व आदिवासी समुदाय का आत्मगौरव बढ़ा है. गौरतलब है कि आदिवासी अधिकारों की समस्या तथा आदिवासी दिवस मनाने का सुदीर्घ इतिहास रहा है, जो 1920 से विश्व के अनेक अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठनों ने लीग आफ नेशन तथा यूनाइटेड नेशन्स में उठाया, जिसका सकारात्मक प्रतिफल है प्रतिवर्ष 09 अगस्त को आदिवासी दिवस के रुप में मनाया जाना. विश्व का प्रथम आदिवासी आवासीय विद्यालय कीस ही है जहां पर आदिवासी कला-परम्पराएं, संस्कार-संस्कृति, सभ्यता, रीति-रिवाज तथा पूजा-पाठ की अनोखी परम्पराएं जीवित हैं. कीस भारत का दूसरा शांतिनिकेतन बन चुका है, जहां पर आधुनिक भारत के नव निर्माण के लिए प्रतिवर्ष चरित्रवान, जिम्मेदार और समाजसेवा परायण मानव गढे जाते हैं. ओडिशा में कुल लगभग 64 प्रकार की आदिवासी जातियां हैं, जो इस प्रदेश की कुल आबादी की लगभग 24 फीसदी हैं, जो आज भी समाज के विकास की मुख्य धारा से कटी हुई हैं. वंचित और उपेक्षित हैं. उनके बच्चों के लिए उत्कृष्ट शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार, कौशल विकास तथा उनके सर्वांगीण विकास का जिम्मा 1992-93 से कीट-कीस के प्राणप्रतिष्ठाता विदेह प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपने हाथों में लिया और अपने आत्मविश्वास, सत्यनिष्ठा, कठोर परिश्रम, लगन तथा त्याग से कीस को विश्व के आकर्षण का मुख्य केन्द्र बन दिया. 2017 में भारत सरकार के मानवसंसाधन विकास मंत्रालय ने कीस को भारत के प्रथम डीम्ड आदिवासी आवासीय विश्वविद्यालय के रुप में मान्यता प्रदान कर दिया है, जो इस धरती का एकमात्र ऐसा डीम्ड विश्वविद्यालय बन चुका है, जहां से प्रतिवर्ष लगभग 35 हजार आदिवासी बच्चे समस्त आवासीय सुविधाओं सहित निःशुल्क केजी कक्षा से लेकर पीजी कक्षा तक उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त करते हैं. स्वावलंबी बन रहे हैं और कीट-कीस के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत को अपना रोलमोडल मानकर उन्हीं की तरह ही निःस्वार्थ समाजसेवा में अपने आपको लगा रहे हैं, जो 09 अगस्त, विश्व आदिवासी दिवस के लिए सबसे बड़ा तोहफा है.