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अब गांव-गांव वर्मी कल्चर खेती की जगा रहे हैं अलख
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90 दिन में 16 पोषक तत्व वाली जैविक खाद होती है तैयार
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किसान उद्धो सिंह सलाना कमाते हैं 8 से 10 लाख रुपये
कौशाम्बी, देश में उत्पादन बढ़ाने की होड़ ने खेती योग्य जमीनों को बंजर बना दिया है। अब इन जमीनों से अनाज पैदा नहीं होता बल्कि कटीली झाड़िया उगने लगी हैं। बंजर जमीनों को बचाने के लिए कौशाम्बी के एक किसान ने वर्मी कल्चर फार्मूले पर आधारित जैविक खाद तैयार कर खेतों को संजीवनी देने का काम शुरू किया है। नतीजे सकारात्मक रूप से सामने आये हैं।
किसान ने अपने साथ-साथ आस-पास के गावों के दर्जनों किसानों को इकठ्ठा किया। वह अपने फायदे को एक पाठशाला के जरिये किसान भाइयों तक पहुंचा रहे हैं। बगैर सरकारी मदद के अब तक हज़ारों किसानों को वर्मी कल्चर खेती का हुनर सिखा चुके हैं।
नेवादा विकासखंड के छोटे से गांव गोविंदपुर में रहने वाले उद्धो सिंह बीस साल पहले रासायनिक खाद का प्रयोग करते थे। नतीजतन खेत की उर्वरता और उपज का स्वाद बदलता चला गया। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इसी बीच उनकी मुलाकात किसान मेले में कृषि वैज्ञानिकों से हुई। यहां उन्हें जैविक खाद वर्मी कल्चर के बारे में जानने और समझने का मौका मिला। उन्होंने खेतों में वर्मी कल्चर खाद के प्रयोग की ठानी। पहले साल उन्हें कुछ खास नतीजे नहीं मिले, लेकिन दूसरे साल उन्हें वर्मी कल्चर खाद के चौंकाने वाले नतीजे देखने को मिले। खेत को संजीवनी और उपज में नया स्वाद उन्हें मिला। जिसके बाद किसान उद्धो सिंह ने खुद का वर्मी कल्चर बेड बनाना शुरू किया। आज वह द्वारिका जैविक कृषि सेवा संस्थान के नाम से फार्म चलाकर किसान भाइयों को खाद मुहैया करा रहे हैं।
90 दिन में 16 पोषक तत्व वाली जैविक खाद होती है तैयार
किसान उद्धो सिंह ने बताया, सबसे पहले हम वर्मी बेड बनाते हैं। फिर उसमें गोबर डालते हैं। गोबर ठंडा होने के बाद इसमें केचुए डालते हैं। तकरीबन 90 दिन में यह खाद बनकर तैयार हो जाती है। इस खाद में 16 पोषक तत्व होते हैं। जो मिट्टी को संजीवनी प्रदान करते हैं। इसके प्रयोग के बाद से उपज का स्वाद एवं पैदावार बढ़ जाती है।
20 साल पहले शुरू किया था जैविक खाद बनाने का काम
किसान उद्धो सिंह ने बताया, उद्यान विभाग के मिली मदद के अनुसार उन्होंने 20 साल पहले 25 हज़ार रुपये लागत लगाकर जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया। मौजूदा समय में वह खाद किसान भाइयों को बेंचकर 8 से 10 लाख रुपये सालाना कमाते हैं। खाद की कीमत उन्होंने 30 रुपये प्रति किलो निर्धारित की है। जिले के करीब 10 हज़ार से अधिक किसान भाई उनके ग्राहक हैं। जो वर्मी कल्चर से बनी जैविक खाद का प्रयोग नियमित रूप से करते हैं।
खेतों से बचे समय में चलाते हैं किसान पाठशाला
खेती के साथ जैविक खाद का बिजनेस शुरू करने वाले किसान उद्धो सिंह पिछले 20 सालों में अपने जैसे सैकड़ों किसानों को जैविक खाद के फायदे को सिखा चुके हैं। इसके लिए वह खुद अपने द्वारिका जैविक कृषि सेवा संस्थान में किसान पाठशाला चलाते हैं। जहां किसान भाई व युवा खेती किसानी में प्रकृति प्रदत्त चीजों की जानकारी लेते हैं।
युवा किसान विजय ने बताया, उन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई की है। प्राइवेट कंपनियों में काम करने के बाद भी वह कुछ हासिल नहीं कर सके। गांव आकर दादा उद्धो सिंह से खेती किसानी का हुनर सीखा। जिसमें वर्मी कम्पोस्ड खाद बनाने का तरीका भी सीखा। अब वह खुद खाद तैयार करते हैं और लोगों को भी खाद तैयार करने का तरीका सिखाते हैं।
गांव-गांव जगाते हैं जैविक खाद प्रयोग की अलख
जिले भर के गांव गांव में खुद उद्धो सिंह जाते हैं। प्रधान के माध्यम से लोगों को इकठ्ठा करते हैं। उनको वर्मी कम्पोस्ड खाद के इस्तेमाल व उसके फायदे समझाते हैं। जिसमें वह बताते हैं कि कैसे वर्मी बेड बनाया जाय, कैसे उसमें केंचए डाले जायं, कितने दिन में खाद तैयार हो जाएगी। अब तक जनपद में हज़ारों की संख्या के किसान भाई जैविक खाद का प्रयोग कर अपने खेतों को रासायनिक खाद से मुक्ति दिला चुके हैं।
साभार – हिस