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अब चीन की ‘शून्य सीमा’ के गांवों में पहुंचा चाइनीज वायरस

नई दिल्ली। ​पूरी दुनिया में कहर बरपाने के बाद अब चाइनीज कोरोना वायरस पूर्वी लद्दाख में​ ​भारत से लगी चीन की ‘शून्य सीमा’ पर बसे एक दर्जन गांवों में पहुंचा है​। ​​​​लगभग 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे ​ट्रांस-हिमालयी गांवों में रहने वाले​ लोगों ने पिछले एक साल ​से भारत-चीन के बीच तनाव को नजदीक से देखा है​। अब इन गांवों में भी कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने यहां के ग्रामीणों के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है​​​​।​​ ​भारतीय सेना और वायुसेना के जवान इन ग्रामीणों की मदद कर रहे हैं​। ​पिछले हफ्ते एक ​गंभीर मरीज को ‘एयर लिफ्ट’ करके वायुसेना ने लेह पहुंचाया, तब उसकी जान बच सकी​। ​​
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​भारत-चीन सीमा के बारह गांवों में से आठ ‘शून्य-सीमा’ पर हैं जहां से चीनी गांव दिखाई देते हैं, जबकि चार गांव भारतीय सीमा से सटे हुए हैं। इसमें पैन्गोंग झील का वह क्षेत्र भी शामिल है, जो पिछले एक साल से भारत और चीन के बीच मुख्य विवाद का केंद्र है। दुर्गम इलाके के यह गांव पहले से ही दोनों देशों के बीच चल रहे गतिरोध के चलते तनाव में हैं। अब इन गांवों में भी कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने यहां के ग्रामीणों के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। चुशुल निर्वाचन क्षेत्र का यह 13 हजार फुट ऊंचाई वाला इलाका भारत के लिए रणनीतिक रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां भारतीय वायु सेना की हवाई पट्टी है। दुनिया की सबसे ऊंची इस डीबीओ एयर स्ट्रिप का इस्तेमाल 1962 के भारत-चीन युद्ध में हुआ था। इस दौरान भी चीनियों ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश की थी।

चुशुल में जनसंख्या ​का ​घनत्व बहुत कम है​​।​ दूर-दूर बसे इन 12 गांवों में केवल 2959 लोग हैं। इसमें से 14 लोग वर्तमान में कोविड पॉजिटिव होकर संगरोध में हैं। लद्दाख की राजधानी लेह में सकारात्मक परीक्षण के बाद चुशुल निर्वाचन क्षेत्र के पार्षद कोंचोक स्टैनज़िन खुद वर्तमान में संगरोध में हैं। उनके निर्वाचन क्षेत्र में​ सिर्फ एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और प्रत्येक गांव में एक​-एक स्वास्थ्य उप-केंद्र है। ​​स्वास्थ्यकर्मी अपने स्तर पर​ ग्रामीणों को कोविड से बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। वे सीमावर्ती क्षेत्रों में ​वह ​सभी स्वास्थ्य सुविधाएं देने की कोशिश कर रहे हैं, ​जो अन्य ​मैदानी ​शहरों में ​लोगों को मिलती हैं​​। उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में ऑक्सीजन की कमी होने पर जरूरतमंदों के लिए ​स्वास्थ्य​ कर्मियों के पास ऑक्सीजन कंसंट्रेटर हैं​।​ चीन सीमा पर तैनात सेना के डॉक्टर ​भी इन गांवों में पहुंचकर ग्रामीणों की देखभाल कर रहे हैं।

सीमा क्षेत्र के हर गांव में 4-5 लोग कोविड के लक्षणों से पीड़ित हैं जिनका परीक्षण हो रहा है। पॉजिटिव लोगों को कोविड देखभाल केंद्र में स्थानांतरित किया जा रहा है। क्षेत्र में पहले कोविड वैक्सीन की दिक्कत थी लेकिन अब 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों के लिए भी टीके आ गए हैं। गंभीर मरीजों को गहन देखभाल के लिए लेह के अस्पतालों में ले जाना चुनौती है क्योंकि आपातकालीन स्थितियों में इतनी ऊंचाई पर सड़क मार्ग से परिवहन बहुत मुश्किल है। इसी वजह से एक सप्ताह पहले भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर से एक कोविड रोगी को चामतांग से लेह स्थानांतरित किया था। इस क्षेत्र के गांव चीन सीमा के अत्यंत करीब होने से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां हमेशा चीनी घुसपैठ का खतरा बना रहता है।

​​शून्य-सीमा वाले गांवों में महामारी और विशेष रूप से ​​लॉकडाउन ने छोटे बच्चों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर दीं हैं क्योंकि स्कूल बंद होने से 2जी इंटरनेट कनेक्टिविटी में उनकी ऑनलाइन कक्षाएं नहीं चल पा रही हैं। बच्चों को पढ़ने के लिए लगभग 14 किमी. दूर पंचायत घर नामक स्थानीय सरकारी कार्यालय जाना पड़ता है। पूरे लद्दाख क्षेत्र में 4जी कनेक्टिविटी केवल 20-30 प्रतिशत को कवर करती है, जबकि चीनी गांवों में दो इंटरनेट टॉवर दिखाई देते हैं। क्षेत्र के योरगो, मान, सातू और चुशुल गांवों में चार पंचायत घर या ग्राम परिषद कार्यालय हैं जहां दूसरे गांवों के बच्चे अपना पाठ डाउनलोड करने आते हैं। यहां के कुछ बच्चे सामान्य समय में लेह शहर में पढ़ते हैं, लेकिन ​​लॉकडाउन​ ​​के दौरान उन्हें ​अपने सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों के गांवों में लौटना पड़ा है।
साभार-हिस

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