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वह गिद्ध हम ही हैं, नोंच-नोंच कर खाने पर हो रहे हैं उतारू…!!!

आखिर हमलोग प्रधानमंत्री, सांसदों, विधायकों और अन्य नेताओं को कब तक गाली देते रहेंगे ? सिस्टम को कब तक कोसते रहेंगे ? सिस्टम को चलाने वाले आप और हम ही तो हैं। बाजारों में जो हर सामान पर धड़ल्ले से कालाबाजारी चल रही है वो आखिर कौन कर रहा है ? वह हमारे बीच का ही तो इंसान है। वो हम ही तो हैं।
विनय श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)

सांस की आस में तड़प रही हैं जिंदगियां। लोग दर दर भटक रहे हैं। कहीं ऑक्सीजन नहीं, तो कहीं दवाई नहीं। कहीं एम्बुलेंस नहीं, तो कहीं ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं। किस्मत से अगर मिल भी जाये, तो सामान से पहले वह गिद्ध रूपी इंसान मिल जाता है, जो मरीज के घर वालों को नोच नोच कर खा जाना चाहता है। इंसानियत नाम की चीज ही नहीं है। ऐसे लोगों को तो इंसान कहने में भी शर्म आ रही है। जिस प्रकार गिद्ध मांस को नोंच-नोंच कर खाता है, उसी प्रकार ये गिद्ध रूपी इंसान असहाय और बेबस लोगों को पैसे के लिए नोंच-नोंच कर खाने पर उतारू हो रहे हैं। इन गिद्धों को पता है कि जान से बड़ा कोई चीज नहीं है। लोग घर भी बेचकर उनकी मांगों की पूर्ति करेंगे। इसलिए मनमाने तरीके से ये लोग मुंह खोले जा रहे हैं। एक तरफ देश महामारी की जंग लड़ रहा है, तो दूसरी तरफ गिद्ध के रूप में इंसान कहलाने वाले अपना ईमान धर्म बेंचकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। आखिर हमलोग प्रधानमंत्री, सांसदों, विधायकों और अन्य नेताओं को कब तक गाली देते रहेंगे ? सिस्टम को कब तक कोसते रहेंगे ? सिस्टम को चलाने वाले आप और हम ही तो हैं। बाजारों में जो हर सामान पर धड़ल्ले से कालाबाजारी चल रही है वो आखिर कौन कर रहा है ? वह हमारे बीच का ही तो इंसान है। वो हम ही तो हैं। एक हजार रुपये से भी कम का ऑक्सिमीटर तीन हजार रुपये में बेंच रहे हैं, वो हम हैं। रेमडीसीवीर को ब्लैक में बेंचने वाले हम हैं। ऑक्सीजन सिलेंडरों को होटलों और अपने महलों में छुपा कर कालाबाजारी करने वाले हम हैं। नकली दवाइयों को बेचकर इंसानों की जान लेने वाले हम ही हैं। पांच किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए एम्बुलेंस का किराया तीन हजार रुपये वसूलने वाले भी हम ही हैं। यहां तक कि जिंदगी की डोर टूट जाने के बाद अंतिम संस्कार के लिए शमशान घाट पर बीस-बीस हजार रुपये तक कि सौदेबाजी करने वाले भी हम ही हैं। कितना गिनाऊँ इन गिद्धों की करतूतों को। नारियल पानी, फलों, सब्जियों, मसालों हर चीज में मिलावट और उसके बाद कालाबाजारी करने वाले हम ही हैं। पैसों की लालच में अवैध तरीके से निर्माण करवाने वाले और उसकी मंजूरी देने वाले भी हम ही हैं। अपार्टमेंट्स बनाकर फ्लैटों को बेईमानी से बेचने वाले हम ही हैं। फ्लैटों पर अवैध कब्जा करने वाले भी हम ही हैं। गरीबों का हक मारकर उनके हिस्से का अन्न से लेकर जल तक हड़प जाने वाला भी हम ही हैं। यह सत्य है कि जितना संघर्ष हम कोरोना महामारी से नहीं कर रहे हैं, उससे अधिक संघर्ष इन कालाबाजारी करने वाले गिद्धों और जीवन के सौदागरों से कर रहे हैं। मरने के बाद इस दुनिया से अपने साथ कुछ भी नहीं जाना है, तब इस तरह की बेईमानी भरी हुई है। अगर मरने के बाद कुछ संग जाता तो पता नहीं क्या होता ? अरे गिद्धों, इंसानियत के दुश्मनों, जाहिलों कुछ तो शर्म करो। पूरे साल जीवन भर अपना ईमान बेंचकर तिजोरी तो भरते ही हो। कम से कम इस महामारी में तो लोगों को बक्श दो। इस महामारी को अपना पाप धोने का अवसर समझो। जरूरत मंद लोगों की सहायता करो। जीवन भर जो तुमने पाप किये हैं उसको धोने का यही अवसर है। जितनी जिंदगियां बचा लोगे, उतना ही उन लोगों का आशीर्वाद पाओगे। बेईमानी से कमाए हुए करोड़ो अरबों रुपये, तुम्हारी गाड़ियां और बंगले सब यहीं रह जाएंगे। जब जाओगे तो वही ढाई मीटर के कफन की जरूरत होगी। इसलिए अब से भी सुधर जाओ। इतिहास गवाह है कि भारत जब भी हारा है, अपनो से ही हारा है। हम विचारों से दरिद्र और एकता से परे हमेशा रहे हैं। हर काल में हम अपनों से ही हारे हैं। अब भी वही हो रहा है। उम्मीद है कुछ तो जागेंगे, देर से ही सही, पर खुद की नीयत को संवारेंगे।

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