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मानवीय भावनाओं को कविताओं में पिरोने वाले महान कवि थे निराला – धर्मेंद्र प्रधान

  • जयंती पर महान कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी को केन्द्रीय मंत्री ने किया याद

भुवनेश्वर. महान कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की जयंती पर केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने उन्हें याद किया है. प्रधान ने ट्वीट कर कहा कि मानवीय भावनाओं को अपनी कविताओं में बखूबी पिरोने वाले हिन्दीा के महान कवि व उपन्यासकार सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की जयंती पर उन्हें सादर नमन. छायावाद युग के प्रमुख स्तंभ, हिंदी साहित्य जगत में निराला जी का अमूल्य योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा.
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल 11, संवत् 1955, तदनुसार 21 फ़रवरी, सन् 1899 में हुआ था. वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा 1930 में प्रारंभ हुई. उनका जन्म मंगलवार को हुआ था. जन्म-कुण्डली बनाने वाले पंडित के कहने से उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया. उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे. वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गांव के निवासी थे. निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई. बाद में हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया. पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ. उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया. तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया. अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा. पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया. शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी. इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता. निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया. संघर्ष का साहस नहीं गंवाया. जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता. वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में 15 अक्टूबर 1961 को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की.


सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की पहली नियुक्ति महिषादल राज्य में ही हुई. उन्होंने 1918 से 1922 तक यह नौकरी की. उसके बाद संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य की ओर प्रवृत्त हुए. 1922 से 1923 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया. 1923 के अगस्त से मतवाला के संपादक मंडल में कार्य किया. इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में उनकी नियुक्ति हुई, जहां वे संस्था की मासिक पत्रिका सुधा से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे. 1935 से 1940 तक का कुछ समय उन्होंने लखनऊ में भी बिताया. इसके बाद 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया. उनकी पहली कविता जन्मभूमि प्रभा नामक मासिक पत्र में जून 1920 में, पहला कविता संग्रह 1923 में अनामिका नाम से तथा पहला निबंध बंग भाषा का उच्चारण अक्टूबर 1920 में मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ. अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है. वे हिन्दी में मुक्तछन्द के प्रवर्तक भी माने जाते हैं.
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की काव्यकला की सबसे बड़ी विशेषता है चित्रण-कौशल. आंतरिक भाव हो या बाह्य जगत के दृश्य-रूप, संगीतात्मक ध्वनियां हो या रंग और गंध, सजीव चरित्र हों या प्राकृतिक दृश्य, सभी अलग-अलग लगनेवाले तत्त्वों को घुला-मिलाकर निराला ऐसा जीवंत चित्र उपस्थित करते थे कि पढ़ने वाला उन चित्रों के माध्यम से ही निराला के मर्म तक पहुंच सकता है. निराला के चित्रों में उनका भावबोध ही नहीं, उनका चिंतन भी समाहित रहता है. इसलिए उनकी बहुत-सी कविताओं में दार्शनिक गहराई उत्पन्न हो जाती है. इस नए चित्रण-कौशल और दार्शनिक गहराई के कारण अक्सर निराला की कविताएं कुछ जटिल हो जाती हैं, जिसे न समझने के नाते विचारक लोग उन पर दुरूहता आदि का आरोप लगाते हैं. उनके किसान-बोध ने ही उन्हें छायावाद की भूमि से आगे बढ़कर यथार्थवाद की नई भूमि निर्मित करने की प्रेरणा दी. विशेष स्थितियों, चरित्रों और दृश्यों को देखते हुए उनके मर्म को पहचानना और उन विशिष्ट वस्तुओं को ही चित्रण का विषय बनाना, निराला के यथार्थवाद की एक उल्लेखनीय विशेषता है. उन्होंने अन्य काव्य, उपन्यास, कहानी, निबंध-आलोचना, पुराण कथा, बालोपयोगी साहित्य, अनुवाद में अपना योगदान दिया, जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.

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