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पश्चिम बंगाल में एंटी-इंकम्बेंसी वोट बिगाड़ेंगे तृणमूल कांग्रेस का गुणा-गणित, भाजपा को होगा फायदा

श्याम सुंदर पोद्दार, कटक

2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ. दो सांसद, तीन विधायक व 10 प्रतिशत वोट पानेवाली भाजपा के 18 संसद सदस्य चुने गये और 10 प्रतिशत वोट पानेवाली भाजपा 40 प्रतिशत वोट पानेवाली राजनीतिक पार्टी बन गयी. भाजपा की इस सफलता का कारण राजनीति के पंडितों ने माकपा के वोटों का भाजपा में ट्रांसफर बताया. जबकि भाजपा के वोटों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी का कारण विभिन्न राजनीतिक दलों की सियासी आंकड़ों में छिपा है.

भाजपा को 2016 के चुनाव में 55 लाख मत मिले, वाम को 1 करोड़ 42 लाख, कांग्रेस को 67 लाख व तृणमूल को 2 करोड़ 45 लाख मत मिले. 2011 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल को 2.47 करोड़, भाजपा को 2.30 करोड़, वाममोरचा को 42 लाख और कांग्रेस को 32 लाख वोट मिले थे. तृणमूल के मतों में लगभग दो लाख की वृद्धि हुई, वहीं भाजपा के मतों में 1 करोड़ 75 लाख मतों की अप्रत्याशित वृद्धि हुई. लेफ्ट के मतों में लगभग 1 करोड़ मतों की कमी आयी और कांग्रेस के मतों में लगभग 35 लाख मतों की कमी आयी. दूसरी ओर, 32 लाख वोट नये मतदाताओं की वृद्धि से मिले. तृणमूल के पक्ष में 2 लाख मतों की वृद्धि हुई. 142 विधानसभा क्षेत्रों में उसके लगभग 30 लाख मत भाजपा में शिफ्ट हुए. उसे 30 लाख मत कांग्रेस से मिले. भाजपा का लगभग 1 करोड़ वोट वाम से शिफ्ट होने से बढ़ा और 30 लाख मत तृणमूल को वोट देनेवाले हिंदुओं मतदाताओं का रहा, जो उसकी मुस्लिमपरस्त नीतियों से नाराज थे. पांच लाख मत कांग्रेस से मिले. इस तरह उसके 1 करोड़ 75 लाख वोट बढ़े. मतलब हुआ कि भाजपा के मतों में वृद्धि वाम, तृणमूल, कांग्रेस, सभी पार्टियों के वोटों के शिप्ट होने से हुई.

तृणमूल के इतने सारे वोट भाजपा में जाने की भरपायी उतनी ही संख्या में कांग्रेस से मुस्लिम क्षेत्रों में तृणमूल को वोट मिलने से हुई. इससे यह निष्कर्ष निकालना कि माकपा ने अपने वोट भाजपा में ट्रांसफर करा दिये, बिलकुल बेबुनियाद है. पश्चिम बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. लेकिन ये सभी राज्य में समान रूप से फैले नहीं हैं. राज्य की 294 सीटों में ये 49 सीटों पर 50 प्रतिशत से 88 प्रतिशत तक हैं और 12 सीटों पर ये 37 प्रतिशत से लेकर 49 प्रतिशत है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से इन 61 विधानसभा क्षेत्रों में अधिकतर पर तृणमूल विजयी होगी. 7-8 पर कांग्रेस-वाम गठबंधन और 1-2 पर भाजपा विजयी हो सकती है. राज्य की 35 सीटों पर तृणमूल पर रिगिंग का आरोप लगा है. इन सीटों के संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता. अन्य 198 सीटों में हम तीन प्रकार के परिणाम देखते हैं. 26 सीटों में तृणमूल का वोट ना बढ़ा है ना ही घटा. 30 सीटों में वहा कांग्रेस से वोट मिलने के बाद तृणमूल का वोट बढ़ा. इन 198 सीटों में लोकसभा चुनाव परिणाम के आधार पर भाजपा को 121 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त है और तृणमूल को 77 विधानसभा क्षेत्रों में.

तृणमूल के पास राज्य सरकार के विरुद्ध एंटी-इंकम्बेंसी होने से वोट बढ़ने की संभावनाएं नगण्य हैं. वहीं, हमें माकपा के बचे हुए वोटों को अपने-अपने क्षेत्रों में देखने पर मिलता है कि वे हिंदू शरणार्थी क्षेत्रों में हैं. इनमे से अधिकांश बचे हुए माकपा के शरणार्थी वोटों के भाजपा में जाने की संभावना है. जैसे 1 करोड़ माकपा के हिंदू शरणार्थी वोट, माकपा से लोकसभा चुनाव में भाजपा में गये. तृणमूल से एंटी-इंकम्बेंसी वोट मुख्य विरोधी दल भाजपा में जायेंगे, कांग्रेस-वाम गठबंधन में नहीं. इस परिवर्तन के चलते भाजपा 121 विधानसभा क्षेत्रों में जहां वह लोकसभा के चुनाव में तृणमूल से आगे थी, वहां वह और अधिक वोटों से आगे होगी और अन्य 70 सीटों पर तृणमूल से आगे रहेगी. मतलब भाजपा 191 सीटें प्राप्त करके अपनी सरकार बनाने में सफल रहेगी.

(लेखक राजनीतिक-सामाजिक मसलों के जानकार हैं)

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