Home / National / पुस्तक लेखन में प्रमाणिक तथ्य मार्गदर्शक होने चाहिए ना कि कोई विचारधारा – एबीआरएसएम

पुस्तक लेखन में प्रमाणिक तथ्य मार्गदर्शक होने चाहिए ना कि कोई विचारधारा – एबीआरएसएम

  • एबीआरएसएम के प्रतिनिधिमंडल ने नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद पुस्तकों में सुधार हेतु दिये सुझाव

भुवनेश्वर. अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के प्रतिनिधिमंडल ने समिति के अध्यक्ष से भेंटकर एनसीईआरटी की पुस्तकों के कंटेंट और डिजाइन में सुधार को लेकर अनेक सुझाव दिया है. महासंघ का मत है की पुस्तक लेखन में प्रमाणिक तथ्य मार्गदर्शक होने चाहिए ना कि कोई विचारधारा. पुस्तकों में वामपंथी व कांग्रेसी लेखकों द्वारा तथ्यों का विरूपण किया गया एवं भारतीय नायकों पर कटाक्ष किए गए हैं. उनके योगदान को सीमित एवं चयनित रूप से दर्शाया गया है.

आर्य आक्रमण सिद्धांत जो वैज्ञानिक रूप से एक गलत शब्द किया जा चुका है. इसके बाद भी औपनिवेशिक युग के इन पूर्वाग्रहों को वर्तमान पुस्तकों में स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है. देश के गौरवशाली समुद्री अतीत की अनदेखी की गई है. भारतीय इतिहास की गलत व्याख्या कर इसका हिंदू मुस्लिम और ब्रिटिश रूप में विभाजन किया गया है. इतिहास को इस तरह से विभाजित करना भी डिवाइड एंड रूल का एक तरीका रहा है. हमारा विद्यार्थी यह समझते हुए बड़ा होता है कि ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में जो कुछ भी अच्छा हुआ है वह सभी पश्चिम की देन है, जबकि ऐसा नहीं है भारत की सभ्यता एवं संस्कृति बहुत समृद्ध एवं विशाल है. पुस्तकों में प्राचीन हिंदू ग्रंथों को महिलाओं की स्वतंत्रता के घोर विरोधी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है जबकि यह पूर्ण रूप से गलत है. संस्कृत भाषा को आक्रमणकारियों की भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है. यह इतिहास को मनमाने ढंग से व्याख्या करने का प्रयत्न है.

ऐसे विरूपणों, अर्धसत्यों, सुविधानुसार चयनित तथ्यों, अस्पष्टताओं, अतिसरलीकरणों, पक्षपातों, पूर्वाग्रहों, सामान्यीकरणों, तुष्टिकरणों, एक विशेष राजनीतिक विचारधारा को पोषण करने वाले तथ्यों के प्रवर्धनों, और अप्रमाणिक जानकारियों से मुक्त भारतीय दृष्टि से प्रमाणिक लेखन की आवश्यकता है. महासंघ का मत है कि पुस्तकों में सुधार करते हुए विद्यालय पाठ्यक्रम को इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास की एक जागरूक समाज विद्यार्थी में विकसित होते हुए उनके भीतर भारतीय होने के नाते गर्व की भावना पैदा हो सके.

राष्ट्र की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए देश के विभिन्न जातीय समूहों और सांस्कृतिक विरासत परंपराओं को सही परिप्रेक्ष्य में पुस्तकों में समाहित किया जाना चाहिए.

महासंघ का मानना है कि शिक्षा तभी प्रासंगिक और सार्थक हो सकती है जबकि इसे विद्यार्थियों के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों से जोड़ा जाए इस हेतु भारत के सभी क्षेत्रों के महापुरुषों के विचारों को पुस्तकों में संतुलित रूप से जोड़ा जाना चाहिए.योग एवं चिकित्सा पद्धतियों जिसे आज दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है का भी पाठ्यक्रम में समुचित रूप से समावेश होना चाहिए.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी भारत की स्वदेशी ज्ञान प्रणाली को स्थानीय समाज और समूह जो इस ज्ञान के पारंपरिक भंडार हैं, के माध्यम से सुरक्षित करने के लिए शिक्षा पाठ्यक्रम में बदलाव की बात कही है. पाठ्य पुस्तकों में ऐसे स्थानीय ज्ञान से संबंधित प्रयोगों को समुचित स्थान दिया जाना चाहिए एवं महत्वपूर्ण स्वदेशी ज्ञान प्रणाली और आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों के बताने वाले प्रमाणों एवं विश्लेषणों को भी विद्यार्थियों को बताया जाए ताकि भारतीय गौरव बोध के साथ-साथ जीवन के प्रति उसकी एकीकृत दृष्टि विकसित हो सके.

Share this news

About desk

Check Also

IAT NEWS INDO ASIAN TIMES ओडिशा की खबर, भुवनेश्वर की खबर, कटक की खबर, आज की ताजा खबर, भारत की ताजा खबर, ब्रेकिंग न्यूज, इंडिया की ताजा खबर

लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण पर राष्ट्रीय अभियान नई चेतना- 4.0 की शुरुआत

नई दिल्ली। ग्रामीण विकास तथा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *