भुवनेश्वर. प्रख्यात ओड़िया संगीत निर्देशक शांतनु महापात्र का निधन मंगलवार देर रात भुवनेश्वर के एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान हो गया. वह 84 वर्ष के थे. जानकारी के अनुसार, महापात्र तीव्र निमोनिया और गुर्दे से संबंधित बीमारी से पीड़ित थे. सोमवार को उनको नाजुक हालत में यहां के केयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
नवंबर 1936 में मयूरभंज जिले के बारिपदा शहर में जन्मे महापात्र ने पाँच साल की उम्र से संगीत नारायण बंछानिधि पंडा से संगीत सीखा. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह 1994 में सेवानिवृत्ति तक ओडिशा खनन निगम (ओएमसी) में भूभौतिकीविद् के रूप में काम कर रहे थे. यह जब कोलकाता में स्नातक कर रहे थे, उस दौरान वह सलिल चौधरी से मिले थे और उनसे प्रेरित होकर उन्होंने गुरुकृष्णा गोस्वामी के गीतों के साथ पहली बार आधुनिक ओड़िया गीत “कोणार्क गाथा” की रचना की और इसे अक्षय मोहंती ने गाया. उन्होंने ‘कालिजयी’ भी लिखा, जिसे सिकंदर आलम ने गाया था. उन्होंने 1963 में सुरजमुखी के साथ ओड़िया फिल्म संगीत संगीतकार के रूप में शुरुआत की और 50 विषम फिल्मों, विशेषताओं, टेलीफिल्म्स, वृत्तचित्रों और विशेष रूप से कला फिल्मों के लिए रचना की. पांच अलग-अलग भाषाओं ओड़िया, हिंदी, बंगाली, असमिया और तेलुगु में फिल्मों में काम करने वाले पहले ओड़िया संगीत निर्देशक के रूप में भी उनको श्रेय दिया गया है. लता मंगेशकर (सूरजमुखी), मोहम्मद रफी (अरुंधति), मन्ना डे (सूरजमुखी), उषा मंगेशकर (अरुंधति) और सुरेश वाडेकर, अनुराधनी जैसे अन्य कलाकारों के साथ उन्होंने काम किया था. महापात्र के पास लगभग 1900 से अधिक रचनाएं हैं. 53 फिल्में (फीचर और टेली), 10 जात्रा और 60 नाटक आकाशवाणी (कटक) और 10 नृत्य नाटक में भी उन्होंने काम किया है. उन्होंने ओडिशा में एक संगीत निर्देशक के रूप में 80 से अधिक पुरस्कार भी जीते हैं.