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करवा चौथः आधुनिकता के बीच संस्कृति का सम्मान

रंजना मिश्रा
भारतीय महिलाएं प्राचीनकाल से पति व संतानों के लिए अनेकों व्रत और पूजा-पाठ करती रही हैं। आधुनिक युग में भी जब स्त्रियां जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, अपनी संस्कृति और परंपराओं का भी वे उसी प्रकार भली-भांति निर्वाहन कर रही हैं। यही भारतीय नारियों की विशेषता है कि वे आधुनिक और वैज्ञानिक होते हुए भी अपनी संस्कृति का भी आदर करना नहीं भूलतीं। विभिन्न क्षेत्रों में बड़े-बड़े पदों पर आसीन उच्च शिक्षित एवं प्रतिष्ठित महिलाएं भी पति के लिए करवा चौथ आदि व्रतों का पालन करती हैं और शाम को श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से पूजा व चंद्रमा का दर्शन कर जलग्रहण करती हैं।
बदलते परिवेश में जब पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय सभ्यता को बहुत अधिक प्रभावित किया है तो ऐसी महिलाएं भी हैं जो ऐसे व्रतों और पूजा-पाठ को अब नकारने लगी हैं। उनका तर्क है कि यदि पत्नी पति के लिए व्रत और पूजा-पाठ करे तो पुरुषों का भी कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी के लिए व्रत रहें और पूजा करें क्योंकि पति और पत्नी का रिश्ता समानता का है। अतः या तो दोनों एक-दूसरे के लिए व्रत और पूजा-पाठ करें अन्यथा कोई न करे। तार्किक बुद्धि वाले स्त्री-पुरुष ऐसे व्रतों और पूजा-पाठ को पिछड़ेपन और अज्ञानता की निशानियां मानते हैं। उनका मानना है कि आज के वैज्ञानिक युग में व्रत और पूजा-पाठ स्त्रियों की गुलामी की मानसिकता को दर्शाते हैं। इसलिए आज के युग में ऐसे पूजा-पाठ और व्रतों का कोई महत्व नहीं है।
फिर भी भारतीय संस्कृति की जड़ें बहुत मजबूत हैं और ऐसे अनर्गल तर्कों से वे उखड़ने वाली नहीं। हां यह अवश्य है कि स्त्री-पुरुष दोनों को समान रूप से एक-दूसरे को सम्मान देना चाहिए। दोनों के जीवन में एक-दूसरे की समान उपयोगिता और महत्व होना चाहिए।
भारतीय संस्कृति में नारी को पुरुष की अर्धांगिनी माना गया है अतः उसे दासी मानने की मानसिकता कुंठित मानसिकता है, जो पुरुष प्रधान समाज द्वारा पैदा की गई है। हमारे धर्मग्रंथों में जहां भी ऐसे संदर्भ आते हैं जब कोई स्त्री अपने पति को स्वामी या नाथ कहती है तो वहीं पति भी अपनी पत्नी को देवी कहकर संबोधित करते हैं। ऐसे वक्तव्य एक-दूसरे के प्रति प्रेम और श्रद्धा को दर्शाते थे न कि शोषण को। हमारे यहां नारी सदैव पूजनीय और आदरणीय रही है। यज्ञ, हवन आदि वैदिक क्रियाएं भी बिना पत्नी के फलदायी नहीं मानी गई।
अपनी-अपनी मान्यताओं के लिए सभी स्वतंत्र हैं। कोई ये व्रत करे या न करे पर जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए पति-पत्नी दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम अत्यंत आवश्यक है। पति और पत्नी जीवन की गाड़ी के दो पहिए कहे गए हैं। एक पहिया भी यदि कमजोर होगा तो गाड़ी सही रूप से नहीं चल पाएगी। ऐसे व्रत और पूजा-पाठ भी प्रेम से ही उत्पन्न हुए हैं। स्त्रियों ने अपने पति की आयु को बढ़ाने की शुभकामनाएं करते हुए ऐसे व्रतों का पालन किया। यह आवश्यक नहीं कि महिलाओं के मन में पति के प्रति श्रद्धा न हो तो भी वो ऐसे व्रतों का पालन करें। जोर जबरदस्ती से इन व्रतों का पालन नहीं कराया जा सकता।
करवा चौथ आदि व्रतों और पूजा-पाठ का महत्व और फल तभी है जब उन्हें श्रद्धापूर्वक किया जाए। बिना श्रद्धा की गयी कोई भी पूजा और व्रत फलीभूत नहीं होते। अतः जब किसी महिला के मन में अपने पति के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना होगी और तब वह व्रत और पूजा-पाठ का पालन करेगी तभी उसे उसके सही फल की प्राप्ति हो सकेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है।) साभार-हिस

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