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राष्ट्र की अवधारणा’ विषय पर व्याख्यान आयोजित
भुवनेश्वर. अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ और श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्म शताब्दी समारोह समिति द्वारा आभासी पटल पर एक विशेष व्याख्यान ‘राष्ट्र की अवधारणा’ विषय पर आयोजित किया गया. मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य ने कहा कि भारत में जीवन का आधार आध्यात्म है और उसी में व्यक्ति व समाज का आचरण समाहित है. इसीलिए वन में रहने वाला वनवासी भी अच्छा आचरण करता है. आध्यात्मिकता के आधार पर भारतीय जीवन पद्धति की दुनिया में एक विशेष पहचान है, जिसे चार प्रकार से देख सकते हैं- जिनमें सत्य एक है, जिसके मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं. स्वामी विवेकानंद का जिक्र करते हुए बताया कि सभी मार्गों को सत्य मानकर स्वीकार करना भारत की विशेषता रही है. दूसरी विविधता में एकता या अनेकता में एकता रखती है. भारत की अपनी एक संस्कृति है, उसे अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है. तीसरा भारतीय हर एक व्यक्ति में ईश्वर का निवास मानता है और चौथा देश के सभी निवासियों की उपासना पद्धति अलग-अलग है लेकिन सब का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है. ठेंगड़ी जी कहते थे कि भारत में प्रत्येक परिवार में पूजा पद्धति अलग-अलग है. एक ही घर में सभी देवी देवताओं की प्रतिमाएं और फोटो रहती हैं. यह विशेषता भारत के बाहर कहीं नहीं मिलती. अध्यात्म आधारित जीवन चिंतन की यह पहचान है और यह सभी हमारे जीवन पद्धति को परिलक्षित करती हैं. उन्होंने हिंदुइज्म की जगह हिंदू राष्ट्र का वर्णन किया. भारत की पुरातन, सनातन परंपरा, हिंदू राष्ट्र की विविधता में एकता और भारतीय समाज के जीवन में त्याग और तपस्या के बारे में गहनता से प्रकाश डाला. भारत का यह चिंतन ऋषि-मुनियों की तपस्या व साधना से आया है. भारतीय दृष्टिकोण का निर्माण, भारतीय आचरण का संरक्षण व प्रचार-प्रसार करने में समाज के व्यक्तियों की भूमिका है. जीवन मूल्यों के आधार पर राम व रावण में विविधता है. राम के जीवन मूल्य भारत में सभी को स्वीकार्य हैं जबकि रावण के नहीं. डॉ वैद्य ने पवित्र भारत भूमि के मातृत्व का वर्णन करते हुए कहा कि यहां चारों धाम, अनेक नदियां जैसे गंगा,गोदावरी,सरस्वती, यमुना, सरयू, कावेरी भारत की गौरव हैं. भारतीयों का भारत भाव उनके आचरण से स्पष्ट होना चाहिए. विदेशों की तो नियति हमेशा ही शोषक रही है. सारे चराचर में एक ही चैतन्य है. उन्होंने अनेक उदाहरणों से भारतीय समाज का त्याग, धर्मनिष्ठ होना, समाज सेवा, आत्मनिर्भरता, आत्म संपन्नता, वसुधैव कुटुंबकम को स्पष्ट किया. हमें समरसता का भाव उत्पन्न करते हुए जीवन को मजबूती के साथ आगे लेकर जाना है और राष्ट्र को राष्ट्रीय दृष्टिकोण से ही देखना है क्योंकि भारतीय दृष्टि की जड़ें गहराई लिए हुए और मजबूत हैं. अंत में सभी की जिज्ञासाओं का समाधान भारतीय दृष्टि से भारतीय परिपेक्ष में किया. इस अवसर पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के माननीय अध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद सिंघल, महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा, संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर सहित महासंघ के पदाधिकारियों एवं देश के विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया.