जरा सोचिये, 65 साल का रिटायर्ड नेवी ऑफिसर, जिन्होंने देश की सुरक्षा की, ऐसे सैनिक का इस प्रकार अपमान कहाँ तक जायज़ है? वो भी सिर्फ इसलिए कि उन्होंने उद्धव विरोधी एक कार्टून को सिर्फ आगे फॉरवर्ड कर दिया. बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि बालासाहेब ठाकरे एक सफल राजनेता के अलावा देश के जाने माने कार्टूनिस्ट भी थे. वह भी विरोध जताते थे.
कार्टून कैरेक्टर के माध्यम से भिन्न-भिन्न मुद्दों पर कटाक्ष करना बहुत पुरानी परंपरा है. बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि बालासाहेब ठाकरे एक सफल राजनेता के अलावा देश के जाने माने कार्टूनिस्ट भी थे. अपने कार्टून के माध्यम से बालासाहेब ठाकरे सरकारों को समय-समय पर आईना दिखाया करते थे. फिर चाहे वो उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही क्यों ना हों. लेकिन, अफसोस कि उसी कार्टूनिस्ट के बेटे को अपने विरुद्ध कार्टून द्वारा आईना दिखाना पसंद नहीं आया और उसके गुंडे देश के पूर्व नेवी ऑफिसर माननीय महेश शर्मा का ना सिर्फ अपमान किया, अपितु उनको बुरी तरह से मारकर घायल कर दिया. जरा सोचिये, 65 साल का रिटायर्ड नेवी ऑफिसर, जिन्होंने देश की सुरक्षा की, ऐसे सैनिक का इस प्रकार अपमान कहाँ तक जायज़ है? वो भी सिर्फ इसलिए कि उन्होंने उद्धव विरोधी एक कार्टून को सिर्फ आगे फॉरवर्ड कर दिया. वास्तव में उद्धव ठाकरे का पांव आजकल जमीन पर नहीं है.
महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका घमंड तो सातवें आसमान पर पहुंच चुका है. आखिर घमंड हो भी क्यों ना. मुख्यमंत्री की कुर्सी पहली बार जो मिली है. वो भी अपने पिता श्री बालासाहेब ठाकरे के नाम पर. वही उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने के बाद से जिस प्रकार महाराष्ट्र में, खासकर मुंबई में एक के बाद एक घटनाएं घट रही हैं, उससे ना सिर्फ देश की जनता आक्रोशित है, बल्कि महाराष्ट्र की जनता में भी लगातार आक्रोश बढ़ रहा है. सुशांत सिंह राजपूत केस में उद्धव सरकार और मुंबई पुलिस की नाकामी हो या फिर कंगना राणावत पर बीएमसी की कारवाई हो. हर जगह उद्धव ठाकरे की नाकामी, नकारात्मकता और अहंकार की राजनीति दिखाई दे रही है. कंगना ने उद्धव ठाकरे की नाकामी क्या बयां कर दी, उन्होंने तो पूरा कानून और बीएमसी उसके पीछे ही लगा दिया. वही बीएमसी जो मुंबई की गड्ढे भरने में हमेशा नाकाम रहती है, अवैध निर्माण के हजारों केस पेंडिंग पड़े हैं, जिसके लिए बीएमसी के पास समय नहीं है और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का अवैध बंगला खड़ा है, जिसके तरफ उसके डर से हथौड़ा भी नहीं उठता है, लेकिन कंगना का ऑफिस तोड़ने के लिए वही बीएमसी हाईकोर्ट के फैसले का इनतजार भी नहीं कर सकी और चौबीस घंटे के अंदर ही ऑफिस को तोड़ दिया. इतनी तत्परता यदि बीएमसी मुंबई की जनता के लिए करती तो शायद हर बार बेइज्जत होने से बच जाती.
फ़िलहाल उद्धव ठाकरे के पास कोई कार्य नहीं है, सिवाय अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों के खिलाफ गुंडागर्दी करने और उनकी आवाज बंद करने के. हर बात में लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देने वाले कांग्रेस के दिग्गज और अन्य वो बुद्धिजीवी आज कहां हैं जब पूर्व सैनिक का अपमान किया जा रहा है, उन्हें मारा पीटा जा रहा है. कहाँ हैं सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी तथा इनके अन्य गैंग जो नारी शक्ति की बात तो करते हैं. लेकिन इनके सरकार का एक प्रवक्ता एक महिला को सरेआम गाली दे रहा है और उसको तरह तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है. जवाब तो सबको देना पड़ेगा. कंगना ने जब मुंबई कि तुलना POK से की थी तो मुझे भी अच्छा नहीं लगा था, लेकिन जिस तरह से पूर्व सैनिक के साथ बर्ताव किया गया है, वह कंगना के बयान को सही साबित करता है. वैसे भी उत्तर भारतीयों के साथ ठाकरे परिवार और शिवसैनिक गुंडों का जो व्यवहार रहा है, वह किसी से छुपा नहीं है. इन ठाकरे गुंडों का दूसरे राज्य के लोगों के लिए यह कहना कि मुंबई किसी के बाप का नहीं है, तो उन्हें भी यह गांठ बांध लेना चाहिए कि मुंबई उनके बाप का भी नहीं है.
मुंबई भारत का ही अंग है, जहां कोई भी भारतीय वहां कभी भी आ सकता है और अपने सुविधानुसार रहने का पूर्ण अधिकार रखता है. उद्धव ठाकरे को यह याद रखना चाहिए कि समय का चक्र बदलने में देर नहीं लगता है. कुर्सी कभी भी जा सकती है. वैसे भी अब उद्धव सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. जिन बालासाहेब ठाकरे ने बड़े अरमानों से शिवसेना की स्थापना की थी, वही पार्टी आज सोनिया सेना के रूप में कार्य कर रही है. इंदिरा गांधी की इमरजेंसी की तरह ही कांग्रेस का हाथ पाकर उद्धव ठाकरे भी लोकतंत्र की आवाज दबा रहे हैं और कुर्सी की खातिर सोनिया गांधी के चरणों में गिरे पड़े हैं. समय बलवान होता है, इसलिए अच्छा होगा कि ठाकरे महाराष्ट्र और मुंबई के विकास कार्यों पर ध्यान दें.