नई दिल्ली ,हैदराबाद में वक्फ बोर्ड ने डिफेंस विभाग की लगभग 2500 वर्ग यार्ड भूमि पर स्वामित्व का दावा कर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। यह मामला न केवल कानूनी और प्रशासनिक दृष्टि से चौंकाने वाला है, बल्कि इससे तेलंगाना की सियासत भी गरमा गई है। विपक्ष का आरोप है कि कांग्रेस सरकार मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए वक्फ बोर्ड को खुली छूट दे रही है और यह “धर्म के नाम पर भूमि कब्जे” की नई राजनीति की शुरुआत है। हैदराबाद में नवंबर में होने वाले उपचुनाव को देखते हुए इस कदम के राजनीतिक मायने और भी गहरे हो गए हैं।
दरअसल, जिस जमीन को लेकर वक्फ बोर्ड ने दावा किया है, वह भूमि वर्षों से रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में रही है। बताया जा रहा है कि यह ज़मीन पहले किसी दरगाह से जुड़ी धार्मिक संपत्ति थी, जिसे ब्रिटिश शासनकाल में सेना ने अपने उपयोग के लिए अधिग्रहित किया था। वक्फ बोर्ड का तर्क है कि चूंकि वक्फ संपत्ति कभी समाप्त नहीं होती, इसलिए यह ज़मीन आज भी उसकी ही है। सवाल यह उठता है कि इतने वर्षों बाद यह मामला अचानक क्यों उभरा और वह भी ऐसे समय में जब राज्य में कांग्रेस सरकार मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण के आरोपों से घिरी हुई है।
तेलंगाना में कांग्रेस सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर यह आरोप लगता रहा है कि वे मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए नीतिगत निर्णयों में झुकाव दिखा रहे हैं। उन्होंने चुनाव के दौरान वादा किया था कि वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा की जाएगी और धार्मिक संस्थाओं को उनके अधिकार लौटाए जाएंगे। अब जब वक्फ बोर्ड लगातार सरकारी, डिफेंस और प्राइवेट जमीनों पर दावा कर रहा है, तो यह संदेह गहराता जा रहा है कि यह सब वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस सरकार ने वक्फ बोर्ड को “राज्य के भीतर राज्य” की तरह काम करने की आज़ादी दे दी है, जो संविधान के खिलाफ है। भाजपा के नेता जी. किशन रेड्डी ने कहा है कि डिफेंस लैंड पर वक्फ बोर्ड का दावा राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ है और कांग्रेस सरकार मुस्लिम वोटों के लिए देश के हितों को गिरवी रख रही है।
यह पहली बार नहीं है जब वक्फ बोर्ड ने इस तरह के विवाद खड़े किए हों। देशभर में वक्फ बोर्ड ने पिछले कुछ वर्षों में कई बार सरकारी और निजी जमीनों पर दावा किया है। भोपाल में बोर्ड ने 11,000 एकड़ भूमि पर स्वामित्व का दावा किया, जयपुर में सिविल लाइंस की एक सरकारी संपत्ति पर विवाद हुआ और दिल्ली में 123 संपत्तियों को “वक्फ संपत्ति” बताते हुए अपने अधीन करने की कोशिश की गई। इन घटनाओं ने यह प्रश्न खड़ा किया है कि क्या वक्फ एक्ट 1995 का दुरुपयोग हो रहा है?
वक्फ कानून की संरचना को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। इस एक्ट के तहत वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता है और उसके निर्णय को केवल वक्फ ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जा सकती है। सामान्य अदालतों का इसमें कोई अधिकार नहीं होता। इसका अर्थ यह हुआ कि एक बार जब कोई जमीन “वक्फ” घोषित हो जाए, तो उसका स्वामित्व विवाद लगभग एकतरफा हो जाता है। कई कानूनी विशेषज्ञ इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और धर्मनिरपेक्षता की भावना के खिलाफ मानते हैं।
डिफेंस लैंड पर इस तरह का दावा न केवल असंवैधानिक है बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अत्यंत खतरनाक है। हैदराबाद की जिस भूमि पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया है, वहां दशकों से सेना की वर्कशॉप और वेयरहाउस मौजूद हैं। सेना की भूमि पर किसी बाहरी संगठन का दावा सुरक्षा प्रोटोकॉल का गंभीर उल्लंघन है। केंद्र सरकार के सूत्रों का कहना है कि डिफेंस संपत्ति पर किसी भी धार्मिक या निजी संस्था का स्वामित्व दावा कानूनी रूप से अस्वीकार्य है।
यह विवाद ऐसे समय में उठा है जब हैदराबाद में नवंबर में उपचुनाव होने वाले हैं। AIMIM और कांग्रेस दोनों के लिए यह सीट मुस्लिम वोट बैंक के लिहाज से महत्वपूर्ण है, वहीं भाजपा इस बार आक्रामक रुख में है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वक्फ बोर्ड का यह कदम एक सुनियोजित राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है ताकि मुस्लिम समुदाय में यह संदेश जाए कि कांग्रेस उनकी धार्मिक संपत्तियों की रक्षक है। परंतु इस रणनीति का उल्टा असर भी हो सकता है क्योंकि हिंदू मतदाता इसे “धार्मिक तुष्टिकरण की हद” के रूप में देख रहे हैं।
वहीं AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी इस मामले पर मौन साधे हुए हैं। विश्लेषकों का कहना है कि वे कांग्रेस की मुस्लिम वोट नीति को कमजोर नहीं करना चाहते, इसलिए सीधे बयान देने से बच रहे हैं। हालांकि AIMIM के स्थानीय नेताओं ने वक्फ बोर्ड के कदम का समर्थन करते हुए कहा है कि मुस्लिम संपत्तियों की हिफाजत धार्मिक कर्तव्य है।
अब मामला राज्य सरकार और रक्षा मंत्रालय के बीच खींचतान में है। केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा है कि किसी भी डिफेंस लैंड पर वक्फ बोर्ड का दावा अवैध है और आवश्यक होने पर यह मामला अदालत में जाएगा। परंतु इस विवाद ने एक बार फिर यह बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या वक्फ बोर्ड का उद्देश्य धार्मिक संपत्तियों की रक्षा है या राजनीतिक लाभ हासिल करना।
हकीकत यह है कि हैदराबाद की यह घटना केवल एक स्थानीय विवाद नहीं बल्कि राष्ट्रीय चेतावनी है। धर्म और राजनीति के इस घालमेल से देश की संवैधानिक आत्मा को खतरा है। अगर हर धार्मिक संस्था इस तर्क पर सरकारी या डिफेंस भूमि पर दावा करने लगे तो देश में अराजकता फैल जाएगी। केंद्र और न्यायपालिका को ऐसे मामलों पर सख्त और स्पष्ट रुख अपनाना होगा ताकि संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों सुरक्षित रह सकें।
वक्फ बोर्ड का यह दावा एक राजनीतिक साजिश की तरह दिखाई देता है, जहां धर्म की आड़ में सत्ता का खेल खेला जा रहा है। कांग्रेस सरकार को यह तय करना होगा कि वह भारत के संविधान के साथ खड़ी है या वोट बैंक की राजनीति के साथ। हैदराबाद का यह विवाद देश को यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि कहीं तुष्टिकरण की राजनीति भारत की एकता और अखंडता के लिए नई चुनौती तो नहीं बन रही है।