
नई दिल्ली।हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें हमारे ग्रह की सेहत और उसे बचाने की हमारी जिम्मेदारी की याद दिलाता है। भारत — एक ऐसा देश जिसे समृद्ध जैव विविधता, विविध भौगोलिक संरचना और प्रकृति से गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव प्राप्त है — इस दिन को एक चेतावनी और उत्सव, दोनों के रूप में देखता है।
औद्योगिक विस्तार, नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों में पर्यटन, वनों की कटाई, जल प्रदूषण और जैविक कृषि प्रथाओं की हानि हमारे पर्यावरण को तेजी से नुकसान पहुँचा रहे हैं। विकास के नाम पर, हम शुद्ध वायु, स्वच्छ जल और पौष्टिक भोजन जैसे प्रकृति के अमूल्य उपहारों का त्याग कर रहे हैं। इसके परिणाम स्पष्ट हैं — बढ़ते तापमान, लगातार प्राकृतिक आपदाएं, जल संकट और प्रदूषण व जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों काप्रसार।
यह लेख भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों, सरकारी लक्ष्यों, अब तक की उपलब्धियों और विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों जैसे संवेदनशील इलाकों में सतत कार्यवाही की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
भारत की पर्यावरणीय चुनौतियाँ
प्रदूषण — एक अदृश्य संकट
भारत विश्व के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों का घर है। दिल्ली, मुंबई और कानपुर जैसे शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण गंभीर श्वसन और हृदय रोगों का कारण बन रहा है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (2020) रिपोर्ट के अनुसार, केवल एक वर्ष में वायु प्रदूषण के कारण भारत में लगभग 17 लाख लोगों की मृत्यु हुई।
जल प्रदूषण की स्थिति भी उतनी ही गंभीर है। गंगा और यमुना जैसी नदियाँ, जिन्हें पवित्र माना जाता है, अवशोधित सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और प्लास्टिक कचरे के कारण गंभीर रूप से प्रदूषित हैं। पीने और कृषि के लिए आवश्यक भूजल भी आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे रसायनों से प्रदूषित हो रहा है।
वनों की कटाई और जैव विविधता की हानि
तेज़ शहरीकरण और औद्योगीकरण ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर-पूर्व जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को जन्म दिया है। इससे सैकड़ों प्रजातियों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो गया है, जिनमें से कई अब संकटग्रस्त हैं।
जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाएँ
भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। समुद्र स्तर में वृद्धि मुंबई और चेन्नई जैसे तटीय शहरों को खतरे में डाल रही है। चक्रवात, गर्मी की लहरें और असमय वर्षा की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जिससे कृषि और आजीविका पर असर पड़ रहा है। गंगा और यमुना को पोषित करने वाले हिमालयी ग्लेशियर चिंताजनक गति से पिघल रहे हैं।
पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन और औद्योगिक गतिविधियाँ
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और उत्तर-पूर्व के पहाड़ी क्षेत्र, जो कभी अपने स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्रसिद्ध थे, अब गंभीर पारिस्थितिकीय दबाव में हैं। पर्यटन एक दोधारी तलवार है — यह आर्थिक लाभ लाता है, लेकिन अनियंत्रित विकास अति-निर्माण, ट्रैफिक, कचरा और जल स्रोतों के अवरोध का कारण बनता है।
इन क्षेत्रों में स्थित जलविद्युत और सीमेंट उद्योग अक्सर पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करते हैं। 2021 में उत्तराखंड के चमोली में हुई त्रासदी, जिसमें कई लोगों की जान गई, इस असंतुलन की भयावह याद दिलाती है।
विकास की कीमत: प्रकृति के उपहारों की हानि
विकास की होड़ में हम उन्हीं संसाधनों की बलि चढ़ा रहे हैं जो जीवन को बनाए रखते हैं:
• वायु: हिमालय की स्वच्छ हवा से लेकर महानगरों की धुएं से भरी हवा तक, गिरावट स्पष्ट है। यह न केवल फेफड़ों को, बल्कि मस्तिष्क, बच्चों की वृद्धि और कार्यक्षमता को भी प्रभावित करती है।
• जल: पारंपरिक जल स्रोत जैसे कुएँ, बावड़ियाँ और तालाब उपेक्षित हो गए हैं। नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं और भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। स्वच्छ पेयजल प्राप्त करना अब एक विशेषाधिकार बनता जा रहा है।
• जैविक भोजन: खाद्य सुरक्षा के नाम पर प्रोत्साहित औद्योगिक कृषि में रसायनों का अत्यधिक प्रयोग हुआ है। इससे कैंसर, हार्मोनल गड़बड़ी और पाचन संबंधी बीमारियों में वृद्धि हुई है।
इन सबका परिणाम जीवनशैली और पर्यावरण संबंधी बीमारियों — जैसे दमा, मोटापा, मधुमेह और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं — के रूप में हमारे सामने आ रहा है। अब बदलाव की जरूरत है।
भारत के पर्यावरणीय लक्ष्य और प्रतिबद्धताएँ
1. पेरिस जलवायु समझौता
भारत ने 2030 तक अपने GDP की उत्सर्जन तीव्रता में 33–35% की कटौती, 40% बिजली उत्पादन को गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने, और 2.5–3 अरब टन CO₂ के लिए वनीकरण के माध्यम से कार्बन सिंक बनाने का लक्ष्य रखा है।
2. 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन
COP26 सम्मेलन (ग्लासगो) में भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य घोषित किया — यह सतत विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
3. स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण
2023 तक भारत ने 120 GW से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा (हाइड्रो को छोड़कर) क्षमता स्थापित कर ली थी। इसमें सौर और पवन ऊर्जा मुख्य स्रोत हैं।
4. नमामि गंगे और नदी संरक्षण
गंगा को पुनर्जीवित और संरक्षित करने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम शुरू किया गया। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं और औद्योगिक अपशिष्ट पर निगरानी सख्त की गई है।
5. स्वच्छ भारत और कचरा प्रबंधन
स्वच्छ भारत अभियान ने स्वच्छता और कचरा प्रबंधन को राष्ट्रीय प्राथमिकता बना दिया। इंदौर जैसे शहर सफाई और कचरा प्रबंधन के रोल मॉडल बन गए हैं।
अब तक की उपलब्धियाँ
• वन क्षेत्र में वृद्धि: इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार, वनों और वृक्ष आवरण में कुछ वृद्धि हुई है।
• ई-वाहन और हरित परिवहन: FAME योजना जैसी पहलों से ई-वाहनों को बढ़ावा मिला है।
• सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध: जुलाई 2022 से कई सिंगल यूज़ प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लागू हुआ।
• जन भागीदारी: चिपको आंदोलन से लेकर आज के नदी सफाई अभियानों तक, आम जनता की भागीदारी लगातार बढ़ रही है।
आगे का रास्ता: सुझाव और आह्वान
1. पर्यावरणीय नियमों को सख्ती से लागू किया जाए
उद्योगों और परियोजनाओं को पारदर्शी आकलन के बाद ही मंजूरी मिले और उल्लंघनों पर दंड तय हों।
2. सतत पर्यटन को बढ़ावा दें
पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यटन की सीमा तय की जानी चाहिए।
3. जैविक खेती को प्रोत्साहित करें
पारंपरिक और रसायन-मुक्त खेती की ओर लौटने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाए।
4. हरित शहरों की योजना बने
शहरी क्षेत्रों में हरियाली, सार्वजनिक परिवहन और जल संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए।
5. पर्यावरणीय शिक्षा
स्कूल, कॉलेज, मीडिया और समाज में पर्यावरणीय जागरूकता को मजबूती से बढ़ाया जाए।
धरती को हमारी अब पहले से ज़्यादा ज़रूरत है
इस पर्यावरण दिवस पर, जब हम “धरती को पुनर्जीवित करें” की प्रतिज्ञा लेते हैं, यह याद रखना ज़रूरी है कि हम प्रकृति से अलग नहीं, बल्कि उसी का हिस्सा हैं। विकास और पर्यावरण विरोधी नहीं हैं — हमें ऐसे विकास की आवश्यकता है जो प्रकृति के साथ तालमेल में हो।
भारत की पर्यावरणीय विरासत — वैदिक ऋचाओं से लेकर गांधीजी की सादगी तक — हमारे पास एक मजबूत आधार है। अब निर्णय हमारा है: या तो हम अंधाधुंध शोषण की राह पर चलें या सतत समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ें।
याद रखिए: हम धरती को अपने पूर्वजों से विरासत में नहीं, बल्कि अपने बच्चों से उधार लेकर चलते हैं। अब कार्रवाई का समय है।