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विद्यालयों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में परीक्षा समय निर्धारण पर पुनर्विचार
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वैज्ञानिक आधार, स्वास्थ्य, समाज और संस्कृति पर प्रभाव
नई दिल्ली। देशभर में सनातनी त्योहारों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न संगठनों और धार्मिक गुरुओं ने सरकार से मांग की है कि प्रमुख हिंदू पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाए। इसके अलावा, विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं के समय निर्धारण में बदलाव कर इन्हें धार्मिक आयोजनों से टकराव से बचाने की भी मांग उठ रही है।
सनातनी पर्वों का वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व
सनातन धर्म के पर्व न केवल आध्यात्मिक आस्था से जुड़े हैं, बल्कि इनका वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व भी है। जैसे—
1. नवरात्रि में उपवास रखने से शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है और मौसम परिवर्तन के अनुकूल प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
2. मकर संक्रांति और छठ पूजा में सूर्य उपासना से शरीर को विटामिन-डी का लाभ मिलता है।
3. होली में रंगों का प्रयोग मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित करता है और हर्बल रंगों से त्वचा रोगों से बचाव होता है।
4. दीपावली में दीप जलाने से वातावरण कीटाणु मुक्त होता है, जिससे संक्रमण कम होता है।
5. इसके अलावा, ये पर्व समाज को जोड़ने, पारिवारिक एकता को मजबूत करने और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने का भी कार्य करते हैं। ऐसे में, इन अवसरों पर सार्वजनिक अवकाश सुनिश्चित करना जरूरी है ताकि लोग अपनी परंपराओं का पालन कर सकें।
विद्यालयों में परीक्षा कैलेंडर व समय बदलने की मांग
कई राज्यों में परीक्षा कार्यक्रम धार्मिक पर्वों के दौरान पड़ने की वजह से विद्यार्थियों को परेशानी होती है। शिक्षाविदों और अभिभावकों की मांग है कि परीक्षा कैलेंडर इस तरह से तैयार किया जाए कि किसी भी महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन के दौरान छात्रों को मानसिक दबाव न झेलना पड़े। पर्वों के समय मानसिक और शारीरिक विश्राम से उनकी एकाग्रता और उत्पादकता भी बढ़ सकती है।
महाकुंभ की बढ़ती लोकप्रियता से मांग हुई तेज
प्रयागराज में हुए महाकुंभ के प्रति बढ़ी आस्था को देखते हुए इसे लेकर भी विशेष अवकाश घोषित करने की मांग की जा रही है। महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन रहा है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु आए हैं। ऐसे में, सनातनी त्योहार पर अवकाश की घोषणा से लोगों को धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने की सुविधा मिलेगी।
संस्कारों की जड़ों से जुड़े बिना अधूरा है बचपन और शिक्षा
आज की बदलती जीवनशैली और आधुनिकता की दौड़ में बच्चों का अपने मूल संस्कारों से जुड़ाव कम होता जा रहा है, जो समाज और संस्कृति के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। संस्कार न केवल नैतिक मूल्यों को मजबूत करते हैं, बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में भी अहम भूमिका निभाते हैं। परिवार और शिक्षण संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को सनातनी परंपराओं, धर्म, आदर्शों और भारतीय संस्कृति से जोड़ें, जिससे वे न केवल सभ्य नागरिक बनें बल्कि अपने जीवन में आत्मविश्वास और संयम को भी अपनाएं। धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में उनकी भागीदारी बढ़ाकर, नैतिक शिक्षाओं से परिचित कराकर और व्यवहार में सद्गुणों का संचार करके ही हम एक संस्कारवान पीढ़ी का निर्माण कर सकते हैं।