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‘मेक इन इंडिया’ को लेकर कांग्रेस का केंद्र पर बड़ा हमला, कहा- विदेशी ब्रांडों को मिली तरजीह

नई दिल्ली। कांग्रेस ने “मेक इन इंडिया” को लेकर मौजूदा केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। पार्टी का कहना है कि मोदी सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ वादा महज़ बयानबाज़ी बनकर रह गया है।
एआईसीसी के मीडिया एवं प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने सोमवार को यहां एक हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला। एक वक्तव्य में उन्होंने रिपोर्ट के हवाले से दावा किया कि सरकारी टेंडर अपने खुद के ‘मेक इन इंडिया’ दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल रहे हैं। पिछले 3 वर्षों में 64,000 करोड़ रुपये मूल्य के 3,500 से ज़्यादा उच्च-मूल्य वाले टेंडरों में से लगभग 40 प्रतिशत को उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ नियमों का अनुपालन न करने के रूप में चिह्नित किया गया था।
पवन खेड़ा ने कहा कि 2017 के मेक इन इंडिया खरीद नियम घरेलू आपूर्तिकर्ताओं को प्राथमिकता देने के लिए पेश किए गए थे लेकिन वास्तव में बाद के टेंडरों ने आर्थिक और गुणवत्ता कारणों का हवाला देते हुए विदेशी ब्रांडों को तरजीह दी, जिससे भारतीय निर्माता हाशिए पर चले गए। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के शुभारंभ के बाद से मोदी सरकार द्वारा जारी किए गए 3,590 टेंडरों में से उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने पाया कि नवंबर 2024 तक 1,502 टेंडर, जिनकी राशि 63,911 करोड़ रुपये थी, मेक इन इंडिया नीति दिशानिर्देशों का पालन करने में विफल रहे।
उन्होंने कहा कि रक्षा, परमाणु ऊर्जा, दूरसंचार और इस्पात जैसे प्रमुख मंत्रालय बार-बार निर्देशों के बावजूद खरीद नियमों को अपडेट करने में विफल रहे। कांग्रेस नेता ने सवाल उठाया कि इन हालत में यह सब किसके लाभ के लिए है? निश्चित रूप से भारतीय व्यवसायों के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को भी लिफ्ट जैसे गुणवत्तापूर्ण भारत में निर्मित उत्पादों की खरीद करने में संघर्ष करना पड़ा, जबकि निविदाओं में दूरसंचार, आईटी और बुनियादी ढांचे के उत्पादों के लिए विदेशी ब्रांडों का खुलकर पक्ष लिया गया, जो 2017 के नियमों और सामान्य वित्तीय नियमों (दोनों) का उल्लंघन है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार की ओर से 2019 में शीर्ष नौकरशाहों को इन मुद्दों को ठीक करने का निर्देश दिया गया था, फिर भी 2024 तक 18 मंत्रालय उल्लंघनों पर कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने में विफल रहे। ‘मेक इन इंडिया’ के 10 साल बाद यह पहल नीतिगत विफलता, कुप्रबंधन और भारतीय निर्माताओं की उपेक्षा की एक प्रमुख मिसाल बन गई है। इसने मोदी सरकार के तहत वादों और वास्तविकता के बीच के अंतर को ही उजागर किया है।
साभार – हिस

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