नई दिल्ली। भारत ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर अमेरिका के बयान को खारिज करते हुए कहा है कि यह आनवश्यक, गलत सूचनाओं पर आधारित और बेतुका बयान है। संकट में फंसे लोगों की मदद करने के लिए उठाए गए इस प्रशंसनीय कदम को वोट बैंक की राजनीति के चश्मे से देखते हुए आलोचना नहीं की जानी चाहिए।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को पत्रकार वार्ता में कहा कि जिन लोगों को भारत की बहुलवादी परंपराओं और इस क्षेत्र में विभाजन के इतिहास के बारे में सीमित जानकारी है, उन्हें उपदेश नहीं देने चाहिए। भारत के सहयोगी और शुभचिंतकों को अच्छी मंशा से उठाए गए इस कदम का स्वागत करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यु मिलर ने सीएए कानून पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि उनका देश इस कानून को लेकर चिंतित है, वह इस कानून के क्रियान्वयन पर नजदीकी से नजर बनाए रखेगा। उन्होंने यह भी कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता और सभी के साथ समान व्यवहार का सम्मान किया जाना मूलभूत लोकतांत्रिक सिद्धांतों का तकाजा है।
प्रवक्ता जायसवाल ने अमेरिका और कुछ अन्य देशों के बयानों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सीएए कुछ लोगों को नागरिकता देने पर केन्द्रित है। यह किसी की नागरिकता लेता नहीं है। कानून उन लोगों को, जिनका कोई देश नहीं रह गया है, मानव गरिमा और मानवाधिकार प्रदान करना है। इस संदर्भ में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर चिंता व्यक्त करने का कोई कारण नहीं है।
उन्होंने दोहराया कि यह कानून भारत का अंदरूनी मामला है तथा देश की समावेशी परंपराओं और मानवाधिकारों के बारे में प्रतिबद्धता पर आधारित है। इसके जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के पीड़ित शरणार्थियों को सुरक्षित पनाह दी गई है। इससे 31 दिसंबर 2014 पहले आए शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी।
साभार – हिस