रांची। झारखंड हाई कोर्ट में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से दायर क्रिमिनल रिट याचिका पर शुक्रवार को आंशिक रूप से सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि इस याचिका में पांच डिफेक्ट हैं, जिसके कारण अब 11 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी। साथ ही कोर्ट ने हेमंत सोरेन को इस याचिका में जो त्रुटियां हैं, उसे भी दूर करने का आदेश दिया है।
यह मामला चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। याचिकाकर्ता हेमंत सोरेन द्वारा दायर याचिका में प्रवर्तन निदेशालय के समन व उसके अधिकार को चुनौती दी गयी है। याचिका में पीएमएलए एक्ट-2002 की धारा-50 व 63 की वैधता को चुनौती दी गयी है। कहा गया है कि उक्त धाराएं संविधान द्वारा दिये गये मौलिक अधिकार का हनन करती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाई कोर्ट जाने की छूट दिये जाने के बाद हेमंत सोरेन ने 23 सितंबर को याचिका दायर की थी।
दरअसल, ईडी ने पांचवां समन जारी कर मुख्यमंत्री को पूछताछ के लिए चार अक्टूबर को रांची स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में बुलाया था लेकिन वे ईडी के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। मुख्यमंत्री के अधिवक्ता ने चार अक्टूबर को ईडी के असिस्टेंट डायरेक्टर को पत्र लिखकर बताया कि यह मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है। यह मामला जब तक हाई कोर्ट में डिसाइड नहीं होता है तब तक मुख्यमंत्री को जारी समन पर कार्रवाई न की जाए।
मुख्यमंत्री की ओर से 23 सितंबर को ईडी के समन के खिलाफ हाई कोर्ट में क्रिमिनल रिट याचिका दाखिल की गई थी। इसमें कहा गया है कि ईडी एवं इसके अधिकारी या कर्मी को समन के आधार पर उन पर कार्रवाई से रोका जाय। साथ ही ईडी को आगे भी समन जारी करने से रोक लगाने का अभी आग्रह किया गया है।
मुख्यमंत्री ने ईडी पर चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने की साजिश करने सहित पीएमएलए 2002 की धारा 50 और 63 की वैधता को चुनौती दी है। आईपीसी के तहत किसी मामले की जांच के दौरान जांच एजेंसी के समक्ष दिए गए बयान की मान्यता कोर्ट में नहीं है लेकिन पीएमएलए एक्ट की धारा 50 के तहत जांच के दौरान एजेंसी के दिए गए बयान की कोर्ट में मान्यता है। ईडी को मिले शक्तियों के तहत बयान दर्ज कराने के दौरान किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार ईडी के पास है।
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