जम्मू। रविवार को साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने सुंगल रोड़, अखनूर में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि कोई जल की उपासना करता है। हम जल के विरुद्ध नहीं है। वो जीवनदायक है। पर जल ही सर्वोपरि नहीं है। जो भी चीज अपना स्वरूप बदल देती है, वो नित्य नहीं है। वो अनादि कभी अपना स्वरूप नहीं बदलता है। कुछ अग्नि की उपासना करते हैं। पर अग्नि भी पराकाष्ठा नहीं है। कुछ वायु की उपासना करते हैं। कुछ पृथ्वी की उपासना करते हैं। कुछ आंतरिक्ष की उपासना करते हैं। शून्य न होती तो मेरे शब्द आपतक नहीं पहुँचने थे। इन सबकी हमारे जीवन में महत्ता है। यही तो खोज वैज्ञानिक कर रहे हैं। यही ऋषि, मुनियों ने की। मूल को खोजना चाहा।
एक सत्ता है, जो सर्वोच्च है। नानक देव इस पर कह रहे हैं कि उस एक की उपासना करो। जो जन्म लेता और मर जाता है, उसकी उपासना क्यों। वैज्ञानिक भी उस एक सत्ता की खोज कर रहे हैं। वो खोजना चाह रहे हैं कि कौन है जो सबकुछ उत्पन्न किया। पृथ्वी की संरचना देखी तो बरबस मानव में यह विचार आया कि सृष्टा कौन है। आखिर इस पूरी संरचना का सृष्टा कौन है। कुछ ने मान लिया कि कोई है, पर समझ नहीं पा रहे हैं। वैज्ञानिक यही ढ़ूँढ़ रहे हैं कि कौन बनाया यह सब। मनुष्य के भटकाव को दादू साहिब बोल रहे हैं कि कोई सगुण में रीझ रहा है, कोई निर्गुण में लगा हुआ है। पर कबीर साहिब जो बोल रहे हैं, वो अटपटा है। वो इन दोनों में नहीं है। आखिर वो सत्ता कैसी है। कौन है। अगर हम देखें तो दो भक्तियों में इंसान लगा है। सगुण और निर्गुण।
खिर उस सत्ता को संत लोग कैसे देखे। ऐसी ऐसी दूरबीनें हैं, जो लाखों मील अंतरिक्ष में देख सकते हैं। पहले हमारे वैज्ञानिक बांसों की नलियों द्वारा देखते थे। पृथ्वी पर बैठकर उन चीजों को देखना चाह रहे हैं। वैज्ञानिक अभी स्थूल चीजों को नहीं देख सके हैं। फिर उसकी क्या बात है। आखिर संतों ने आतंरिक दुनिया कैसे देखी।
आपकी आत्मा सगुण चीजों में लगी है। जो भी आप दृश्य देख रहे हैं, आत्मा की शक्ति है। सुन रहे हैं, समझ रहे हैं, सब आत्मा की शक्ति है। संत वहाँ गये हैं। यहाँ साहिब कह रहे हैं कि ब्रह्माण्ड का खेल पिंड में देखा। शास्त्रों में भी लिखा है कि आत्मा आज्ञाचक्र में है। जो हम स्वांस ले रहे हैं, वो आत्मा की उर्जा है। वो आत्मा ले रही है। यही नाभि में पहुँचकर 10 रूपों में बदलती है। उन्हीं से शरीर चल रहा है। हम कहते भी हैं कि प्राण निकल गये। प्राण इस शरीर का संचालन कर रहे हैं। जो भी काम कर रहे हैं आत्मा की शक्ति से है। यही जब शून्य में निवास किया तो बड़ी ताकत आ जाती है। एक क्षण में तब वो शरीर जितना सफर करता है, उतना कोई नहीं कर सकता है। पूरे शरीर से अपनी आत्मा को निकालकर शून्य में चलना। पवन को पलटकर शून्य में चलना कहते हैं। इसे ही जीवत मरना कहते हैं। वैज्ञानिकों का अच्छा प्रयास है। वो भौतिक में अच्छा कर रहे हैं। पर उस बिंदु तक कभी भी नहीं पहुँच सकते हैं। उनकी एक परिधि है। आप मेरी बात का भरौसा करना कि भौतिक जीवन केवल इस पृथ्वी पर है और कहीं नहीं है।
साहिब ने सुरति योग स्थापित किया। सुरति से वो देश देख सकते हैं। एक सैकेंड से करोड़ों मील से भी अधिक सफर होता है। इतनी स्पीड है आपके अंतवाहक शरीर में। इसलिए संतों को प्रेक्टीकल ज्ञान होता है। कुछ अब पेड़ को भी मान रहे हैं। पर पेड़ कोई सर्वोच्च सत्ता तो नहीं है न। साहिब इस पर कह रहे हैं कि पत्तों को सींच रहे हैं और मूल को सुखा डाला है।