कोलकाता, राजनीतिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी राजनीतिक दलों के साथ एकजुटता दिखाते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुईं। शनिवार को हुई इस बैठक का बहिष्कार करने के लिए तृणमूल ने अजीबो-गरीब तर्क देते हुए कहा कि ममता को बोलने के लिए वक्त नहीं दिया जाता है।
अब आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि ममता बनर्जी का इस बैठक में शामिल नहीं होना राज्य के लिए काफी नुकसानदेह है। दावा किया जा रहा है कि इससे राज्य के बकाये के संबंध में जो सार्थक मांग की जानी चाहिए, उस मंच को सरकार खो चुकी है।
बिजनेस मैनेजमेंट में पीएचडी, दक्षिण कोलकाता के एक जाने-माने कॉलेज के प्रिंसिपल और भाजपा की आर्थिक शाखा के संयुक्त संयोजक डॉ. पंकज रॉय ने कहा कि यह एक बहुत बड़ी गलती है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के नेता एक साल से इस बात को मुद्दा बना रहे हैं कि केंद्र सरकार राज्य के योजनाओं के लिए फंड नहीं दे रही है। उन्होंने इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया। लोग भ्रमित हैं। यह उनके लिए इस आवंटन के नीति-निर्माताओं के समक्ष तथ्य और तर्क प्रस्तुत करने का एक बड़ा अवसर था। लेकिन वह बैठक में ही नहीं गए। जाहिर सी बात है कि फंड नहीं मिलने का मुद्दा इनके लिए केवल राजनीतिक है ना कि बंगाल के लोगों की बेहतरी के लिए वास्तव में उन्हें फंड रिलीज करवाने में कोई दिलचस्पी है।
विकासशील देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली (आरआईएस) में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. प्रवीर दे के अनुसार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं होने से राज्य आर्थिक रूप से प्रभावित नहीं होगा लेकिन, पश्चिम बंगाल का प्रतिनिधित्व न होने का मतलब है कि राज्य और केंद्र के बीच की खाई बढ़ती जा रही है, जो निश्चित रूप से अच्छा संकेत नहीं है। आज की बैठक में केन्द्र सरकार की मंशा ”विकसित भारत 2047” का खाका पेश किया गया। 2047 तक भारत विकसित देश बन सकता है। भारत को एक मजबूत विकसित देश बनाने के लिए राज्यों की पूर्ण भागीदारी की आवश्यकता है। ऐसे में बैठक काफी अहम थी। हालांकि, यह निश्चित नहीं है कि वर्तमान सत्ताधारी दल 2047 तक शासन करेगा या नहीं। राजनीतिक मतभेदों के बावजूद, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली ऐसी बैठकों में राज्यों का अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व किया जाना चाहिए।
भाजपा राज्य कमेटी के सदस्य सुदीप्त गुहा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय योजना के विचार पर ध्यान केंद्रित किया, जिसके बारे में नेताजी सुभाष चंद्र, मेघनाद साहा, एम विश्वेश्वरैया और अन्य ने 1939 में बात की थी। लेकिन शहरी विकास की योजना बनाते समय साल्ट लेक, चंडीगढ़ और गांधीनगर को एक सांचे में नहीं ढाला गया। प्रत्येक क्षेत्र का एक विशिष्ट चरित्र होता है। विकास की रूपरेखा तैयार करने के लिए स्थानिक विशिष्टता को महत्व दिया जाना चाहिए। इसीलिए योजना आयोग के ढांचे में बदलाव कर नीति को लागू किया गया है। मुख्यमंत्री ममता बैठक में शामिल ही नहीं हुईं तो जाहिर सी बात है वह इन चीजों से बहुत अधिक सरोकार नहीं रखतीं। यानी उनकी सोच विकास की नहीं, बल्कि राजनीति केंद्रित है।
प्रसिद्ध विश्लेषक, बांग्लादेश में एक प्रतिष्ठित भारतीय फर्म के प्रभारी चार्टर्ड एकाउंटेंट प्रदीप मल्लिक ने कहा, ”मूल रूप से, राज्यों को नीति आयोग की बैठकों में अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिलता है। सुनने या न सुनने को प्राथमिकता देना ठीक नहीं है। क्या हम बैठक का बहिष्कार कर प्रक्रिया को नकार नहीं रहे हैं? गणतांत्रिक ढांचे में ऐसी बैठकों में भाग लेने का अवसर नहीं चूकना चाहिए। यह केंद्र को और छूट देने जैसा है।”
साभार -हिस