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अतीक के आतंक का 43 साल बाद खात्मा

लखनऊ,माफिया अतीक अहमद की हत्या के साथ ही 43 साल से जारी उसके आतंक का अंत हो गया। प्रयागराज के काल्विन हॉस्पिटल में शनिवार रात करीब साढ़े 10 बजे चिकित्सीय जांच के लिए ले जाते समय तीन हमलावरों ने उस पर तोबड़तोड़ फायरिंग की थी। इस हमले में अतीक और उसके भाई अशरफ की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।

श्रावस्ती जिले का रहने वाले अतीक का जन्म 1962 में हुआ था। उसकी शादी शाइस्ता परवीन से हुई थी। अतीक के पांच बेटों में पहला बेटा उमर लखनऊ जेल में है और दूसरा बेटा अली प्रयागराज की नैनी जेल में बंद है। तीसरा बेटा असद उमेश हत्याकांड में फरार चल रहा था, जिसको विगत शुक्रवार को यूपी एसटीएफ ने मुठभेड़ में ढेर कर दिया। दो सबसे छोटे बेटे अहजम और अबान बाल संरक्षण गृह में हैं। पत्नी शाइस्ता फरार है।

अतीक के खिलाफ पिछले चार दशकों में लगभग उत्तर प्रदेश के विभिन्न थानों में 101 आपराधिक मामले दर्ज किए गए। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 1979 में चकिया में कत्ल की पहली वारदात की थी और उसके खिलाफ पहला हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था। इसके बाद वह एक के बाद अपराध करता चला गया। वर्ष 1980 के दशक में चांद बाबा का आतंक था। अतीक ने जब पैर पसारना शुरू किया तो चांद बाबा से उसका टकराव शुरू हुआ।

अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद उसकी रुचि राजनीति में भी बढ़ गई तो उसने सन् 1989 में विधानसभा का चुनाव लड़ा। चुनाव जीतने के बाद अपनी बादशाहत को कायम करना शुरू कर दिया। उसके बाद उसने चांद बाबाग को भी मार गिराया। चांद बाबा के मारे जाने के बाद अतीक की खुलकर गुंडई शुरू कर दी थी। वह एक बाद हत्या, रंगदारी, उगाही, जमीन कब्जा करने लगा। जिसने भी उसके खिलाफ आवाज उठाई वो मारा गया। उसने 12 बीघा जमीन हड़पने के लिए झलवा की सूरजकली के पति को भी मार दिया था।

राजू पाल की हत्या

अतीक ने साल 2005 में बसपा विधायक राजूपाल की हत्या अपने शूटरों से करवायी थी। इलाहाबाद (पश्चिम) विधानसभा सीट से अतीक के छोटे भाई अशरफ के हारने के बाद वारदात को अंजाम दिया गया था क्योंकि चुनाव जीतने के बाद बसपा विधायक राजूपाल ने अतीक के प्रभाव को चुनौती दी थी। राजूपाल की हत्या के मुख्य गवाह उमेश पाल का अपहरण कर उसका बयान बदलवाने के लिए दबाव बनाया गया। अतीक पर मुकदमा दर्ज कराया गया। अपहरण कांड का मामला यूं ही चलता रहा और उमेश पाल मुकदमे की पैरवी करते रहे। इसी बीच 24 फरवरी को उमेश पाल और उसके दो गनर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसमें अतीक, पत्नी शाइस्ता, भाई अशरफ, बेटा अशद सहित कई लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। हत्यारों पर इनाम भी रखा गया था। प्रयागराज के स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट ने उमेश पाल प्रकरण में अतीक को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस मामले में फरार उसके बेटे अशद को झांसी में मुठभेड़ में मार गिराया गया।

राजनीति सफर

अतीक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1989 में की थी। तब से वह विधानसभा का पांच बार और लोकसभा का एक बार सदस्य रहा। अतीक प्रयागराज (पश्चिम) विधानसभा सीट के लिए एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुना गया था। उसने अगले दो विधानसभा चुनावों में अपनी सीट बरकरार रखी। वर्ष 1996 में लगातार चौथी बार सपा के टिकट पर जीता। तीन साल बाद उसने अपना दल (कमेरावादी) के अध्यक्ष बनने के लिए सपा छोड़ दी। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में भी उसने जीत दर्ज की, लेकिन अगले ही साल वह सपा में लौट आया। वह 2004 से 2009 तक यूपी के फूलपुर से 14वीं लोकसभा के लिए चुना गया था।
साभार -हिस

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