जयपुर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का विश्वास है कि समर्थ, समृद्ध, स्वाभिमानी भारत ही वैश्विक शांति की गारंटी है। और भारत तभी समर्थ, समृद्ध और स्वाभिमानी हो सकता है, जब भारत का प्रत्येक व्यक्ति समर्थ, समृद्ध और स्वाभिमानी हो। जयपुर के जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में चल रहे सेवा भारती के तीसरे राष्ट्रीय सेवा संगम के समापन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। उन्होंने देश भर से आए कार्यकर्ताओं को सेवा साधक की संज्ञा देते हुए आह्वान किया कि हम सभी को भारत के इस महान चित्र को अपने सामने रखकर कार्य करना होगा। भले ही हम छोटी इकाई पर कार्य कर रहे हों, लेकिन हमारा विचार वैश्विक होना चाहिए।
सरकार्यवाह होसबाले ने समाज के उस हिस्से को भी संबल देने की आवश्यकता पर बल दिया जो हाशिये पर माना जाता है। उन्होंने किन्नर समाज, कुष्ठ रोगी, वेश्यावृत्ति के लिए विवश महिलाओं के बच्चों पर चिंता जताते हुए कहा कि समाज के इस हिस्से को सशक्त करने की चिंता भी समाज को करनी होगी, इसके लिए सरकार के भरोसे बैठना उचित नहीं हो सकता। हाशिये पर माने जाने वाले समाज के इस हिस्से के प्रति सोच को बदलने व उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए सामूहिक सामाजिक प्रयास करने होंगे।
उन्होंने कहा कि सेवाकार्य का सबसे पहला चरण सेवा के विचार का अधिष्ठान है। दूसरा चरण, उस कार्य के करने के लिए साधनों का है। तीसरा चरण कार्य को मूर्तरूप देने का है। इसके बाद चौथा चरण ईश्वरीय कृपा का है। जिस तरह किसान खेत जोतता है, बुवाई करता है, लेकिन अंत में फसल के अनुकूल बारिश, सर्दी, गर्मी ईश्वर प्रदान करता है। हमें सेवा का कार्य ईश्वरीय कार्य समझकर करना है। उन्होंने कहा कि ऐसे संगम ऊर्जा में वृद्धि करते हैं और नया सीखने का भी अवसर प्रदान करते हैं। साथ ही, यदि कुछ विफलताओं को लेकर मन कमजोर होता है तब उसमें भी ऐसे संगम सकारात्मक ऊर्जा भरते हैं।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि अज्ञानी और अशिक्षित लोगों की पीड़ा को नहीं सुनने वाले द्रोही और घातक होते हैं। विवेकानंद कहते थे, मैं उस ईश्वर की आराधना करता हूं जिसे मूर्ख लोग मनुष्य कहते हैं। सरकार्यवाह ने कहा कि हमें हर मनुष्य में परमात्मा का अंश मानकर सेवाकार्य करनी चाहिए। सरकार्यवाह ने सेवा साधकों को अपने कार्य की समीक्षा भी निरंतर करने की आवश्यकता बताई। समीक्षा से आगे का मार्ग व लक्ष्य प्रशस्त होता है।
साभार -हिस