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भगवान बिरसा मुण्डा की पावन धरती को अत्याचारी मिशनरियों के चंगुल में नहीं फंसने देंगे
नई दिल्ली। विश्व हिन्दू परिषद् (विहिप) ने भगवान बिरसा मुंडा की पावन धरती पर ही बनवासी समाज की प्राचीन संस्कृति व स्वधर्म को तोड़ने तथा बनवासी बच्चों को बेचने के घ्रणित षडयंत्र से ईसाई मिशनरियों को बाज आने की चेतावनी दी है. विहिप के केन्द्रीय महामंत्री श्री मिलिंद परांडे ने आज कहा कि ईसाई मिशनरियां झारझंड में पूतना की तरह सुन्दर रूप रख कर भगवान कृष्ण के समान शक्तिशाली वनवासी समाज को धर्मांतरण के जहर से मारने की कुचेष्टा कर रही हैं. विहिप उनके इन कुटिल षडयंत्रों को सफल नहीं होने देगी.
श्री परांडे ने यह भी कहा कि वनवासी समाज के अनेक वीर महात्माओं ने समाज के सम्मान में विदेशी आक्रमणकारियों व विधर्मियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए वीर गति प्राप्त की. इनमें महाराणा प्रताप के साथ अकबर के विरुद्ध राणा पुंजा का संघर्ष, भील समाज के पूज्य गोविन्द गुरु जी का अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष तथा 1857 में स्वतंत्रता सेनानी टाट्या भील का संघर्ष विश्व विख्यात है. भगवान बिरसा मुंडा ने तो हिन्दू समाज की रक्षार्थ ही इन्हीं ईसाइयों की जेल में ना सिर्फ यातनाएं झेलीं अपितु, वनवासी समाज व स्वधर्म की रक्षार्थ संघर्ष करते हुए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया. झारखंड के वनवासियों को ईसाई मिशनरियों द्वारा, कुटिलता पूर्वक धर्मांतरण के कारण, हुए भीषण संघर्ष में, उनके इन महान बलिदानों को नहीं भूलना चाहिए.
उन्होंने कहा कि चर्च सीएए के नाम पर लोगों में भय व परस्पर घ्रणा का निर्माण करते हुए उन्हें भड़काने का कुचक्र रच रहा है. झारखंड के लोहरदगा सहित देशभर में सीएए विरोध के नाम पर हुई हिंसा भी इसी प्रकार की झूंठ व दुष्प्रचार का ही परिणाम थी. मिशनरियों सहित सम्पूर्ण सैक्यूलर गेंग को इससे बाज आना चाहिए.
विहिप महामंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि बनवासी बच्चों को बेचे जाने की घटनाओं में सलिप्त ईसाई मिशनरी संस्थाओं को, जिन्हें इस कारण बंद कर दिया गया था, गत कुछ महीनों में पुन: चालू कर दिया गया है. यह बेहद चिंतनीय है. उन पर प्रतिबन्ध जारी रहना चाहिए.
ज्ञातव्य रहे कि मीडिया में छपी कुछ खबरों के अनुसार हाल ही में रांची के आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो व सहायक बिशप थियोडोर मस्करेन्हस सहित ईसाई संस्थाओं व पादरियों का एक प्रतिनिधि मंडल झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिला है. इसने संसदीय कानून सीएए के साथ एनआरसी व एनपीआर का विरोध करते हुए, आगामी जनगणना सूची में, वनवासी समुदाय के लिए, सरना कोड को सामिल कर, उन्हें अपना अलग धर्म लिखने का विकल्प दिए जाने तक, एनपीआर स्थगित करने की मांग की है.