Home / National / मुंबई के आजाद मैदान में ‘पंढरपुर वारी: आस्था और स्नेह का संगम’ प्रदर्शनी 19 फरवरी तक चलेगी
IAT NEWS INDO ASIAN TIMES ओडिशा की खबर, भुवनेश्वर की खबर, कटक की खबर, आज की ताजा खबर, भारत की ताजा खबर, ब्रेकिंग न्यूज, इंडिया की ताजा खबर

मुंबई के आजाद मैदान में ‘पंढरपुर वारी: आस्था और स्नेह का संगम’ प्रदर्शनी 19 फरवरी तक चलेगी

मुंबई,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव के एक हिस्से के रूप में मुंबई के आजाद मैदान में ‘पंढरपुर वारी: आस्था और स्नेह का संगम’ प्रदर्शनी का आयोजन किया है। यह प्रदर्शनी 19 फरवरी तक चलेगी।

इस प्रदर्शनी का उद्घाटन केंद्रीय संस्कृति, पर्यटन और उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास मंत्री जी. किशन रेड्डी और महाराष्ट्र के वन, सांस्कृतिक मामले एवं मत्स्य पालन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने किया था।

पंढरपुर महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में चंद्रभागा नदी के तट पर एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यहां आषाढ़ मास (जून-जुलाई) में एक बड़ी यात्रा होती है, जिसे ‘वारी’ के नाम से जाना जाता है। उस दौरान विठोबा/विठ्ठल मंदिर के दर्शन के लिए लगभग दस लाख तीर्थयात्री यहां आते हैं। पंढरपुर यात्रा हर साल आयोजित की जाती है। यह महाराष्ट्र की सबसे बड़ी तीर्थयात्राओं में से एक है। यह विठोबा और उनकी पत्नी रखुमई (रुक्मिणी) की पूजा का मुख्य केंद्र है। वारकरी के रूप में जाने जाने वाले भगवान विठ्ठल के अनुयायी उन्हें प्रेम से मौली (मां) कहते हैं। वारकरी एक मराठी शब्द है, जिसका अर्थ है वारी का प्रदर्शन करने वाला या विठोबा की पूजा करने वाला।

वारी में संतों की पादुका को उनके सम्बंधित मंदिरों से पंढरपुर तक पालकी में ले जाना शामिल है, विशेष रूप से संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम की। यह परम्परा 800 साल से अधिक पुरानी है। हजारों वारकरी इस जुलूस में शामिल होते हैं और महाराष्ट्र तथा आस-पास के राज्यों- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक के विभिन्न स्थानों से विठोबा मंदिर, पंढरपुर तक पैदल यात्रा करते हैं। यात्रा आषाढ़ एकादशी की पवित्र तिथि पर विठोबा मंदिर में समाप्त होती है। यह यात्रा समरसता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें तीर्थयात्रियों के बीच सामाजिक स्थिति का भेद अपने आप विलीन हो जाता है। जाति, सामाजिक स्तर का कोई भेद शेष नहीं रह जाता है।

विठोबा देव की पूजा महाराष्ट्र के कई संतों ने की है। उनमें से कुछ प्रमुख संत हैं- संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत नामदेव, संत एकनाथ, संत निवृत्तिनाथ, संत मुक्ताबाई, संत चोखामेला, संत सावता माली, संत नरहरी सोनार, संत गोरा कुंभार और संत गजानन महाराज। मराठी में अभंग के रूप में जानी जाने वाली इन संतों की रचनाओं को इस आध्यात्मिक यात्रा के दौरान गाया जाता है।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) की ओर से आयोजित प्रदर्शनी ‘पंढरपुर वारी: आस्था और स्नेह का संगम’ मौली के प्रति वारकरियों के विश्वास और स्नेह को प्रस्तुत करने का एक प्रयास है, जो पंढरपुर आषाढ़ी वारी के दौरान भाव और दृश्य, दोनों रूपों में देखने को मिलता है।

प्रदर्शनी के हिस्से के रूप में आईजीएनसीए ने एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन भी किया। इस संगोष्ठी के वक्ताओं में डॉ. सरयू दोषी, डॉ. सदानंद श्रीधर मोरे, डॉ. अभय तिलक, डॉ. प्रभाकर कोलेकर और डॉ. गणेश कुमार शामिल थे। वक्ताओं ने वारी के आध्यात्मिक, सामाजिक, मानवीय, साहित्यिक पहलुओं तथा वारकरी जीवन शैली और वारकरी संतों के अभंगों के संगीत पक्ष व उनके प्रदर्शन पक्ष पर प्रकाश डाला।

केंद्रीय विदेश एवं संस्कृति राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी और केंद्रीय पंचायती राज राज्यमंत्री कपिल पाटिल ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
साभार- हिस

Share this news

About desk

Check Also

महाराष्ट्र विस चुनाव नतीजों पर प्रधानमंत्री ने जताया लोगों का आभार, कहा- यह विकास और सुशासन की ऐतिहासिक जीत

नई दिल्ली। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के निर्णायक नतीजों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वहां की …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *